जब जाना आज का परिपेक्ष
सम्हल सम्हल कर कदम रखे
किसी से हो कर सतर्क
सावधानी नहीं भूलोगे
किसी को अपना समझ कर
हर बात सांझा की हर बात बताई सहज मे
जब राज उजागर हुए मन में खटास आई |
किसी को कह ना सका उसे अपना
हुए सब गैर कोई अपना ना हुआ
गैर समझा उसको
अपने भी
हुए गैर |
चन्द बातो पर उसका रुखदेख
देख मन उलझा मेरा
एक बात समझ में आई देखो
अपना ना समझों पहले देखो उसे बरतो|
यदि परख लिया हो ठीक से
आगे पैर बढ़ाओ
यदि गलत राह नहीं खोजोगे
बड़ों की बात मानोंगे
पैर गलत नहीं पड़ेगे
तुम अकेले नहीं रहोगे
सब का साथ लेकर जब चलोगे |
आशा सक्सेना
सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्य वाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंसच है ! देख परख कर ही किसीको मित्र बनाना चाहिए !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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