हाँ हाँ ना ना में कितना
समय बीता
तुमने ज़रा भी ध्यान ना दिया
मैं सोचता रहा यही कि
कभी तो हाँ में उत्तर आएगा |
मैंने पूरा प्रयास किया है
निराशा हाथ ना आएगी
है विश्वास मुझे अपने पर
जो चाहता हूँ मिल जाता है |
जब भी हार के कगार पर रहूँगा
किसी की सलाह को मान दूँगा
यह तो जान लिया है
अवसर नहीं गवाऊंगा |
यदि तुमने जल्दी
कोई
निर्णय ना लिया
पछताती रह जाओगी
यदि सही चुनाव ना कर पाईं |
मेरे लिए हो तुम विशेष
यही मैं खुल कर कह ना सका
अधर में लटका रहा
हाँ हाँ ना ना में उलझा रहा |
मेरे ख्याल से तुम भी हो सही सलाह की हो हक़दार
समय बर्बाद करो गी यह ना जानता था
क्यूँ मुझे अटका रखा है
तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा है |
हाँ ,ना कब
तक करती रहोगी
निष्कर्ष पर ना पहुँची यदि
समय हाथों से फिसल जाएगा
कुछ भी हाथ ना आएगा |
आशा सक्सेना
सार्थक चिंतन ! सुन्दर सृजन !
जवाब देंहटाएंसाधना टिप्पणी के लिए धन्यवाद |
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