जाने अनजाने आगे बढ़ा
राह को ना पहचाना
कितनी बार राह भूला
ढूंढता रहा मार्ग मुश्किल से मिला|
पर पक्का ना था
काम चल गया
ऊंची सीडियों पर
कठिनाई आई चढ़ने में
सफलता तो मिली पर
कठिनाई से मन को भय हुआ
कितनी बार सोचा भय किस लिए
किसी का साथ होता तो अच्छा
होता |
फिर भी दिल को दिलासा दिया
ईश्वर का नाम लिया
चल दिया घंटियो की आवाज़ सुन कर
आखिर मन पहुंचा अपने आराध्य तक |
अपार प्रसन्नता हुई जब
दर्शन किये
पूरे प्रयत्न के बाद गहन संतुष्टि मिली
अपनी सफलता पर |
काश कोई सहारा और होता
जिससे निर्देश ले पाता
पूर्णता का एहसास होता
जिसकी चाह थी मन को |
आशा सक्सेना
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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