जब मैंने तुम्हें पुकारा
तुमने मुझे नजर अंदाज किया
यह तक भूले मैं भी तो लाइन
में खड़ी हूँ
तुमसे भेट के लिए |
मन को ठेस लगी
पर जान लिया कोई स्थान नहीं
मेरा तुम्हारे लिए घर में
मैं तो खोज रही हूँ तुमको
जानने के लिए कि तुम कौन हो मेरे
मेरे अपने या कोई गैर
जब यह जान जाऊंगी तुम कौण
मेरे
तुम्हारे घर में कदम रखूंगी
इससे पहले पूरी पड़ताल करूगी
या किसी से सलाह लूगी
जब संतुष्टि हो जाएगी
अपने कदम आगे बढाऊंगी
अब कोई भूल नहीं करूंगी |
पर सोचती हूँ कहीं समय
ना निकल जाए हाथो से
केवल रेत ही रह जाएगी
रिक्त हाथों में |
आशा सक्सेना
सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए
हटाएंक्या बात है ! सार्थक चिंतन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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