20 अप्रैल, 2023

कल्पना लोक के इस दौर में

 

कल्पनालोक  के इस दौर  में

कैसे दूर रहूँ उससे

सब ने समझाया भी इतना

कभी कहने में आई यही बात

मन को ना  भाई कैसे |

कविता का कोई रूप नहीं होता

केवल भावनाएं ही होतीं उसमें

सुन्दर शब्दों से सजी है

 मन में हिलोरे खा रही है |

प्यार से सजी हुई है

दिलों दीवार में घुमड़ा  रही हैं

कभी नदिया सी बेखौफ  बह रही हैं

अपनी राह से है लगाव इतना

आगे आने वाले राह नहीं भटकते |

यही मन को रहा एहसास

पर मुझे भय नहीं है

अपने ऊपर आत्मविश्वास है इतना

कभी पैर ना फिसले ताकत से रहे भर पूर

  चंचल चपला सी बह रही है |

आशा सक्सेना 

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