मैंने कभी एक भी
काम ना किया
पहले
बहुत कठिनाई हुई
जब अकेले करना पड़ा सब काम |
दिन भर काम ही काम
क्या यही है इन्साफ मेरे साथ
सुबह से शाम तक रहती व्यस्त
कभी किसी काम से नहीं ना कर
पाती |
किससे करू इनकार
है यही जिम्मेंदारी मेरी
घर की सफाई करू खाना बनाऊँ
या आगत का स्वागत करू |
यदि आलस्य करू
अपने आप को अपराधी समझूं
मुझे भी अच्छा नहीं लगता
कैसे अपने को परिवर्तित
करू|
कोई मुझे समझाओ मै क्या करू
जब भी काम करती हूँ
शरीर साथ नहीं देता
दिनभर के काम से थक
जाती हूँ |
क्या कोई तरकीब नहीं
बहुत थकने से बचने के लिए
अपने पर ध्यान दे पाने के
लिए
हूँ अकेली कैसे बच पाऊँ
घरके कामों की सीमा से |
आशा सक्सेना
कहानी घर घर की ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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