मन में उसके क्या है
वह खुद ही नहीं जानती
प्यार किसे कहते हैं
अनुभव किया ही नहीं |
जब धर में चर्चा हुई
उसकी शादी की
उसे बड़ा आश्चर्य हुआ
ऎसी भी क्या जल्दी है |
अभी किशोरावस्था बीती ही
नहीं
योवन ने अगड़ाई ना ली
क्या वह भार हुई सब के लिए
या उसका सोच गलत है |
क्यूँ बार बार उसे रोका टोका जाता
यह करो या ना करो
हर बार
कुछ सलाह दी जाती
भाई से कुछ भी नहीं कहा
जाता
क्या कुछ भी मना करने को
कह दिया जाता |
यह है कैसी दोगली नीति
मेरे सरपरस्तों की
बार बार मन में आती
यह सही नहीं की जाती |
आशा सक्सेना
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जवाब देंहटाएंलड़कियों को सदैव नियंत्रण में रखने की परम्परा रही है ! सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंdhanyvaad sadhana tippadee ke lye
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंसच कहूँ तो ये कविता हर उस लड़की की आवाज़ है, जो सवाल तो करना चाहती है पर जवाब उसे कभी नहीं मिलते। समाज में लड़की की हर हरकत पर रोक-टोक और लड़कों की आज़ादी के बीच का फर्क तुमने बहुत सादगी से दिखाया है। ये कविता सिर्फ भावनाएँ नहीं, एक सवाल है उस सोच पर, जो लड़की की परिपक्वता तय करने का हक़ खुद को दे देती है।
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