तुम्हारा हुस्न लाजबाब
तुममें गुण हैं हजार
पर आत्म विश्वास की कमीं ने
कमर तोड़ दी तुम्हारी |
यही यदि दृढ रही होती
खुद पर बड़ी आस्था होती
तुमने कभी अन्याय ना सहा
होता
तुम्हारा सर कभी ना झुका होता |
अपने को अपमानित नहीं समझा होता
कारण कुछ भी रहा होता
पर कदम ना डोले होते |
एक यही उसे वरदान मिला है
समाज में भी सम्मानित होती
किसी से दूर नहीं होती
यही अटल विश्वास
यदि जाग्रत किया होत़ा
तुम आगे सब से होती
जीवन
मैं खुशहाल रहती |
आशा सक्सेना
व्यावहारिक ज्ञान ! सार्थक चिंतन !
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