श्याम पिया मेरे मन बसिया
मैंने की तुम्हारी आरजू
दिन रात तुम्हारा सुमिरन किया
तब भी तुमने मुझ पर कृपा नहीं की |
जैसे ही मंदिर के घंटे बजते
ढोल नगाड़े बजते
होती भक्तों की तैयारी आने की
मेरे भी कदम बढ़ जाते उस ओर|
जब श्लोक कानों में पड़ते
मन में हलचल होती
चाल दो गुनी हो जाती
मंदिर पहुँच कर ही कदम ठरते |
तुम्हारे कदमों को छूकर
ही अपना मन भर् लेती
मुझे और कुछ ना चाहिए
तुम्हारे हाथ हों मेरे सर पर
और आशीष हो मुझ पर
मेरा मन कहता
हो आशीष केवल मुझ पर
और कोई ना हिस्सा बांटे
अपना हिस्सा ही स्वीकार करे |
तुम मेरे हो मेरे ही रहो
श्याम सलोने और किसी के नहीं
मुझे राधा मीरा से भी ईर्षा होती है
और तुम्हारे अन्य भक्तों से |
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनिता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
धन्यवाद श्वेताजी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत ही सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधा देवरानी जी |
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