वय बचपन की बीती
एक पड़ाव मैंने जीता
कदम रखा किशोर वय मैं
खिल उठी सम उम्र लोगों में
मुझे प्यारे लगाने लगे संगी साथी
अपनों के सिवाय यही भूल हुई मुझसे
अपने तो अपने होते हैं
मैंने अपनों में गैरों में भेद ण समझा
यहीं मात खाई मैंने |
धीरे धीरे प्रतिबन्ध बढ़ने लगे
समाज का दखल भी बढ़ा
रिश्ते भी आने लगे
कभी प्यार से समझाया
कभी वरजा गया मुझे |
अब लगा तीसरी वयआने को है
योवन आने का इशारा मिला
मुँह में चपलता देख मैं शरमाई |
अब आया वांन प्रस्त
बहुत व्यस्त रही तब तक
अब मेरी विचार धारा बदली
धर्म कर्म की और हुई आकृष्ट
अपनी जिम्मेंदारी पूरी करली मैंने
|अब अंत समय में भ्क़गवत भजन कर रही हूँ
यही चाह रही मेरी |मेरी देह छोड़ने के बाद
मेरे कर्मों को याद किया जाए |
मेरा जीवन सफल हो जाए |
आशा सक्सेना
सम्पूर्ण जीवन का सुन्दर शब्दचित्र ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंDhoni àvaad îsadhanaþ
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