10 अक्टूबर, 2023

फिर से शाम उतर आई

 

फिर से शाम उतरी छत पर

फैली विदा होती  सुनहरी धूप

पर ऊपर जाने का मन ना  हुआ

ना जाने क्यों मन में कोई खुशी नहीं

 उदासी छाई है जीवन की उतरती श्याम में |

लगता है सभी कार्य पूर्ण हुए हैं

फिर धरती पर व्यर्थ बोझ क्यूँ रहे

किसी और को भी अवसर मिले मेरे सिवाय

उससे भी अपने कर्ज पूरे करवालूँ

कहीं समय फिर  मिले ना मिले

 सर पर बोझ रख कहाँ जाऊंगी

चार दिन की खुशी बार बार नहीं आती

ऐसा जीने के लिए कुछ समय 

खुशियाँ के लिए भी निकालना पड़ता है

यदि मिल जाए चार चाँद लग जाते हैं सारे जीवन में |


आशा सक्सेना 

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