कविता के समुन्दर में
अनगिनत मछलियाँ
और कई ले कर साथ
थी इतनी जनता कि
देखी भीड़ कि जगह ना मिली
बैठने के लिए
मन को दोष दिया लापरवाही का
समय का मोल बताया
पिछली बेंच पर बैठने के लिए हुए बाध्य
आधी सुनी ना सुनी
घर की याद आई
मन को धीरज बंधाया
अगले वर्ष आने का वादा लिया
सुनने सुनाने का समय ना था
बच्चों के साथ
कोई भीड़ से धबरा रहा था
घर जाने की जीद्द कर रहा था
खैर मन को समझाया
इतना प्यारा कवि सम्मेलन त्याग
घर की राह पकड़ी |
भीड़ इतनी थी कि वहां से
निकल नहीं पाए
बिना पुलिस के सहारे के
पर मन को बहुत दुःख हुआ |
आशा सक्सेना
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