07 अक्टूबर, 2023

कविता के समंदर में

 

कविता के समुन्दर में

अनगिनत मछलियाँ

और कई ले कर साथ

थी इतनी जनता  कि  

देखी भीड़ कि जगह ना  मिली

 बैठने के लिए

मन को दोष दिया लापरवाही का

समय का मोल बताया

पिछली बेंच पर बैठने के लिए हुए बाध्य

आधी सुनी ना सुनी

घर की याद आई

मन को धीरज बंधाया

अगले वर्ष आने का वादा लिया

सुनने सुनाने का समय ना था

बच्चों के साथ

कोई भीड़ से धबरा रहा था

घर जाने की जीद्द कर रहा था

खैर मन को समझाया

इतना प्यारा कवि सम्मेलन त्याग

घर की राह पकड़ी |

भीड़ इतनी थी कि वहां से

 निकल नहीं पाए

बिना पुलिस के सहारे के  

पर मन को बहुत दुःख हुआ |

आशा सक्सेना  

 

 

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