एक दिन मेरी छोटी बहन ने
मुझसे पूंछा आपको इतनी कहानी कैसे याद हैं |मैंने अपनी यादों की किताब खोली और एक
पन्ना खोला |देखी लिस्ट उन कहानियों की जो कभी रात को मम्मीं सुनाया करतीं थी |
दिमाग पर जोर डाला तब
कहानियों का पिटारा खुला |मैंने उसे रोज
एक कहानी सुनाने का वादा किया |
नजाने कितनी पुरानी
कहानियां याद आईं उसे बड़ी प्रसन्नता होती थी कहानी सुन कर |उसने मुझे प्रोत्साहित
किया उन कहानियों को लिपिबद्ध करने के लिए फिर भी मेरी हिम्मत नहीं हुई कहानी
लिखने की |बार बार कहने से अब कोशिश करूंगी सोचा |मेरख्याल था ये सुनी सुनाई कहानी जाने किसने लिखी होंगी
उनको अपने नाम से कैसे लिखूंगी |पर बार बार की जिद्द ने प्रयत्न करने के लिए बाध्य
किया है –
सात भाइयों की एक ही बहिन थी |सातों उससे बहुत प्यार करते थे |
वय प्राप्ति के बाद उसका बिवाह उसी शहर में एक संपन्न परिवार में हुआ |ससुराल में कोई कमीं न थी |पर भाई बहुत चिंता करते थे उसकी|
जब पहली करवा चतुर्थी आई बहन ने निर्जला व्रत रखा |
उसे व्रत चाँद देख कर ही खोलना था |भाई बहुत परेशान थे कि बिना जल के बहिन उपास कैसे रखेगी |उन्हों ने आपस में विचार विमर्श किया |कोई तरकीब निकाली जाए कि बहिन का व्रत जल्दी समाप्त हो जाए |
आँगन में एक अखैवर का वृक्ष लगा था |भाइयों में से एक
शाम होते ही पेड़ की सबसे ऊंची डाल पर एक छलनी ले कर चढ़ गया |उसमें एक जलता हुआ दिया रख लिया |
सबसे छोटा भाई बहिन के पास जा कर बोला “चाँद निकल आया है”चलो बहिन व्रत खोलो | बहिन बहुत सीधी थी |उसने पानी पी कर
व्रत तोड़ा |इतने में उसकी ससुराल से समाचार आया कि न जाने उसके पति को क्या हो गया |वह खबर सुनते ही अपनी ससुराल चल दी |वहाँ सब हिचकियाँ ले कर रो रहे थे |आसपास के लोग ले जाने की तैयारी करने लगे |उससे रहा नहीं गया और पति की अर्थी को ठेले पर रख घर से निकली |
सबसे पहले घूरे के पास गई उससे कहा “घूरे मामा मैं तुम्हारे पास
आऊँ”|घूरे ने कहा “बेटी तेरे दिन भारी हैं मेरे पास न आ” उसे बुरा लगा और कहा “जाओ१२ वर्ष बाद भी तुम जैसे हो वैसे ही रहोगे”| थोड़ा और आगे चली|राह में एक गाय मिली उससे कहा “क्या मैं तेरे पास आऊँ”|गाय ने भी उसे अपने पास ठहराने से मना कर दिया और कहा “बेटी तेरे दिन भारी है मेरे पास कैसे रहेगी”|उसे बहुत दुःख हुआ और श्राप दिया जिस मुंह से गाय ने मना किया था उसी मुंह से गाय विष्ठा पान करेगी |
हारी थकी वह एक गूलर के पास पहुंची “गूलर भैया मैं तुम्हारे पास
रुक जाऊं”|पर गूलर से भी निराशा ही हाथ लगी |उसने गूलर को श्राप दिया की तुम्हारा फल कोई नहीं खाएगा उसमें कीड़े पड़ जाएंगे |
आगे जा कर वह एक बरगद के नीचे बैठने लगी और पूंछा “क्या मैं आपके आश्रय में रह सकती हूँ”|बरगद ने जबाब दिया “जहां इतने लोगों ने आश्रय लिया है तुम्हारे लिए क्या कमी है”|वह पेड़ के नीचे छाँव देख कर बैठ गई और प्रार्थना करने लगी मेरी क्या भूल थी जो मुझे यह कष्ट दिया है|एक ने सलाह दी तुमसे कोई भूल हुई है
देवी की प्रार्थना करो और अपने सुहाग की भिक्षा मांगो |पूरा साल होने को आया जब बारहवी चतुर्थी आई उसने माँ के चरण पकड़ लिए और
कहा पहले मेरा सुहाग लौटाओ तभी तुम्हारे पैर छोडूंगी |देवी का मन पसीजा और अपनी छोटी उंगली सेउसके पती को छुआ |उसका पती राम राम कह कर उठ कर बैठ गया |वे दौनों खुशी खुशी घर आए और अपने परिवार के साथ रहने लगे |
आशासक्सेना
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