आँखों की आँखों से बातें
ली जज्बातों की सौगातें
कुछ हुई आत्मसात
शेष बहीं आसुओं के साथ
अश्रु थे खारे जल से
साथ पा कर उनका
हुई नमकीन वे भी
यह अनुभव कुछ कटु हुआ
वह भाप बन कर उड़ न सका
हुई बोझिल तन्हाइयां
मलिन मन मस्तिष्क हुआ
धीरज कोई न दे पाया
कटु सत्य सामने आया
कितनी बार किया मंथन
आस तक न जगी झूठी
पर मैं जान गयी
हूँ खड़ी कगार पर
कभी भी किसी भी पल
यह साथ छूट जाएगा
अधिक खींच न सह पाएगा
जीवन डोर का बंधन
जिसे समझा था अटूट
टूटेगा बिखर जाएगा
जाने कहाँ ले जाएगा |
आशा