होगी जाने कब वर्षा ,अब कोइ ना ठौर ||
बरस बरस वारिद थका ,चाहता अब विश्राम |
यूं तो दामिनी दमकी ,पर आई ना काम ||
हरी भरी धरती हुई ,खुशियों का है दौर |
किससे क्या आशा करें ,क्यूं कर रुके अब और
||
जाने का होता मन ना ,आँसू भर भर रोय |
नदी तड़ाग उफन रहे ,सीमा अपनी खोय ||
जाने का मन बना लिया ,आने का वादा ले |
लगता असंभव रुकना ,यूं रिसती आँखों से ||