प्रातः सूर्य देव चले देशाटन को
हो कर अपने रथ पर सवार
बाल रश्मियाँ बिखरी हैं हर ओर
अम्बर हुआ सुनहरा लाल |
खिली धूप नीलाम्बर में मन भावन
कोहरा छटा है आसमान का रंग निखरा है
बादल ने विदा ली है
अब बहार आई है
पंछी भी हुए चंचल सचेत
उड़ते फिरते करते किलोल
इस डाल से उस डाल पर |
पेड़ो पर छाई हरियाली
फूल खिले हैं डाली डाली
बगिया महक रही है सारी
रंग बिरंगे पुष्पों की सुगंघों से |
बिछी श्वेत पुष्प शैया पारिजात वृक्ष के नीचे
देखते
ही बनती है छटा उसकी
मन करता वहीं बैठूं उस बगिया में
दृष्टि पटल पर समेट उसे हृदय में रखूँ
सुबह की धूप का आनंद उठाऊँ |
बच्चे खेलते वहां झूलते इन झूलों पर
तरह तरह के करतब दिखाते
ऊपर से नीचे आते धूम मचाते
नीचे से ऊपर जाते फिसल पट्टी से
खुश होते किलकारी भरते |
आशा