25 अगस्त, 2012

गोरैया बचाओ

उस कार्य से मोहब्बत करो 
जिससे तुम्हें सुकून मिले 
कुछ शान्ति का अनुभाव  हो
कुछ करने का अहसास जगे |
गौरैया  बचाओ 
दाना  चिड़ियों को खिलाओ
पक्षिओं से प्यार करो 
अपना घर आबाद करो |
आशा

24 अगस्त, 2012

असीम कृपा उसकी



किया कभी ना पूजन अर्चन
ना ही दान धर्म किया
करतल ध्वनि के साथ
ना ही भजन  कीर्तन किया
पोथी भी कोइ न पढ़ी
छप्पन व्यंजन सजा थाल में
भोग भी न लगा पाया |
पर उस पर अटल विश्वास से
कर्म किया निष्काम भाव से
हो दृढ़ संकल्प कदम बढ़ाए
निष्ठा से पूर्ण मनोयोग से
कर्म स्थली को जाना परखा
उस पर ही ध्यानकिया केंद्रित 
असीम कृपा उसकी हुई
बिना मांगे मुराद मिली
तभी तो यह जान पाया
छप्पन भोग से नही कोइ नाता
है  केवल  वह भाव का भूखा
असीम कृपा जब उसकी होगी
कहीं कमीं नहीं होगी | 
आशा 

22 अगस्त, 2012


 मुझे आप सब को यह बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि मेरी कविताओं का दूसरा संकलन"अंतःप्रवाह "प्रकाशित हो गया है |
 अंतःप्रवाह

19 अगस्त, 2012

सबब उदासी का

आज के  जन मानस में 
रहती निष्प्रह नितांत अकेली 
दिखती मितभाषी 
स्मित मुस्कान बिखेरती
उदासी  फिर भी छाई रहती
उससे अलग न हो पाती
पर सबब उदासी का
किसी से न बांटती
जब  भी मन  टटोलना चाहा
शब्द अधरों तकआकार रुक जाते
अश्रुओं के आवेगा में  खो जाते
 असहज हो अपने आप में खो जाती
फिर  भी हर बात उसकी
अपनी और आकृष्ट करती
कई विचार आते जाते
पर निष्कर्ष तक न पहुच  पाते
एक दिन वह  चली गयी
संपर्क  सूत्र तब भी ना टूटे
समाज सेवा ध्येय बनाया
पूरी निष्ठा सेअपनाया
व्यस्तता बढती गयी
उदासी  फिर भी न गयी
वह दुनिया भी छोड़ गयी
कोइ उसे समझ ना पाया
क्या चाहती थी जान न पाया
था क्या राज उदासी का
समझ  नहीं  पाया
राज राज ही रह गया
उसी के साथ चला गया |
आशा










16 अगस्त, 2012

उपहार प्रकृति के


नव निधि आठों सिद्धि छिपी
इस वृह्द वितान में
जब भी जलधर खुश हो झूमें  
रिमझिम बरखा बरसे
धरती अवगाहन करती
अपनी प्रसन्नता बिखेरती
हरियाली के रूप में |
नदियां नाले हो जल प्लावित
बहकते ,उफनते उद्द्वेलित हुए
बहा ले चले सभी अवांछित
अब उनका स्वच्छ जल
है संकेत उनकी उत्फुल्लता का  
वह खुशी शब्दों में व्यक्त न हो पाई
पर ध्वनि अपने मन की कह गयी |
पर सागर है धीर गंभीर
जाने कितना गरल समेटा
उसने अपने उर में
कोइ प्रभाव उस पर न हुआ
रहा शांत स्थिर तब भी  |











14 अगस्त, 2012

उत्साह कहीं खो गया


उत्साह कहीं खोगया
जब स्वतंत्र हुए बहुत खुश थे
था गुमान उपलब्धि पर
उत्साह से भरे थे
 रहता था इंतज़ार 
स्वतन्त्रता दिवस का
इसे त्यौहार सा मनाने का
फिर सर उठाया चुपके से 
अनगिनत समस्याओं ने
सोचा समय तो लगेगा
 समृद्धि के आगमन में
पर ऐसा कुछ भी न हुआ
दूकान लगी समस्याओं की
विसंगतियाँ बढ़ने लगीं
दरार पड़ी भाईचारे में
हुआ धन वितरण असमान
गरीब और गरीब हो गया 
धनिक  वर्ग की चांदी हुई
भृष्टाचार ने सीमा लांघी
महंगाई भी पीछे न रही
बढती हुई जनसंख्या ने
प्राकृतिक आपदाओं ने
समृद्धि पर रोक लगाई
आम आदमी पिसने लगा
समस्याओं की चक्की में
 प्रतिवर्ष स्वतन्त्रता दिवस
नए स्वप्न सजा जाता
तिरंगे की छाँव तले
झूठे  वादे  करवाता
पर सपने सच नहीं होते
चीनी की मिठास भी
होने लगी कम कम सी
धुनें देश भक्ति गीतों की
आकृष्ट अब  नहीं करतीं
 लगती सब औपचारिकता
उत्साह कहीं खो गया
पहले भी विकासशील थे 
आज  भी वहीँ हैं
लंबी अवधि के बाद भी
आगे नहीं बढे हैं |
समय का काँटा
 थम सा गया है
समृद्धि से कोसों दूर
अब भी जी रहे हैं
है बड़ा अंतर सिद्धांत
और व्यवहार में |
आशा 


12 अगस्त, 2012

तम और गहराता


तम और अधिक गहराता
गैरों सा व्यवहार उसका
जीवन बेरंग कर जाता
कोई  अपना नहीं लगता
जीना बेमतलब लगता
जब कोई  साथ नहीं देता
मन में कुंठाएं उपजाता
 खुशी जब  चेहरे पर होती
 सहना भी उसे मुश्किल होता
यही परायापन यही बेरुखी
अंदर तक सालती
लगती अकारथ जिंदगी
उदासी घर कर जाती
घुटन इतनी बढ़ जाती
व्यर्थ जिंदगी लगने लगती
जाने कब तक ढोना है
इस भार सी जिंदगी को
निराशा के गर्त में फंसी
इस बेमकसद जिंदगी को |

आशा