सृष्टि के इस भव सागर में
बड़ी छोटी विविध रंगों की मछलियाँ
बड़ी चतुर सुजान अपना भोजन
बड़ी चतुर सुजान अपना भोजन
छोटी को बनाती वह बेचारी
कहीं भी सर अपना छुपाती
खोजी निगाहें ढूँढ ही लेतीं
तब भी उनका पेट न भरता
दया प्रेम उनमें न होता
छोटी सोचती ही रह जातीं
कैसे करें अपना बचाव
सिर्फ तरकीबें सोचती पर
पर व्यर्थ सारे प्रयत्न होते
कभी किसी नौका का सहारा लेतीं
सागर की उत्तंग लहरों से टकरा कर
नौका खुद ही नष्ट हो जाती
यही सच है कि
बड़ी मछली छोटी को निगल जाती |
बड़ी मछली छोटी को निगल जाती |
आशा