06 जून, 2020

तूफान


सागर ने रौद्र रूप धारण किया
तेज गति से तूफान उठा   
आगे बढ़ा टकराया तटबंध से
  पास के घर ताश के पत्तों से  ढहे  
जब मिलने आया तूफान  उनसे |
रहने वाले हुए स्तब्ध  कुछ सोच नहीं पाए
 दहशत से उभर नहीं पाए
देखा जब उत्तंग उफनती
लहरों को टकराते तट से |
गति थी इतनी तीव्र तूफान की  
ठहराव की कोई गुंजाइश न थी
पर टकराने से गति में कुछ अवरोध आया
 बह कर आए वृक्षों ने किया  मार्ग अवरुद्ध |
  ताश के पत्तों से बने बहते मकान
  कितनी मुश्किल से ये बनाएगे होंगे
कितना कष्ट सहा होगा मकान बनाने में
उसे सजाने सवारने में |
प्रकृति भी कितनी निष्ठुर है
ज़रा भी दया नहीं पालती   
थोड़ा भी समय नहीं लगता
 सब मटियामेट करने में |
बरबादी का यह आलम देखा नहीं जाता
आँखें भर भर आती हैं यह दुर्दशा देख
जाने कब  जीवन पटरी  पर लौटेगा फिर से  
 सोच  उदासी छा जाती है मन में |
आशा

04 जून, 2020

दस्तूर जमाने का

                                       जमाने का है दस्तूर यही
हम अलग कहाँ हैं उससे  
 जैसे  रीत रिवाज  होगे  
 उस में ही बहते जाएंगे |
चलन जमाने का भी देखेंगे
जो भी  रंग होगा दुनिया का
 उसी में रंगते  जाएंगे
सुख दुःख  में शामिल होंगे |
समाज से अलग कभी
सोच भी न पाएंगे
अलगाव सहन नहीं होगा
उसकी धारा में बहते जाएंगे |
अगर अलग हुए समाज से
 अपना वजूद खो देंगे
 इसे सहन न कर पाएंगे
बिना अस्तित्व के  कैसे जी पाएंगे 
आशा

03 जून, 2020

समर क्षेत्र




घोर संग्राम छिड़ा है
देश युद्ध भूमि बना है
कोरोना महांमारी से
दो दो हाथ करने को |
देश विविध  समस्याओं से
 भी जूझ रहा है
पर हिम्मत नहीं हारी है
ना शब्द निकाल फैका है
 दिमाग के शब्द कोष से |
कोई भी प्रयत्न करने में
हिचकिचाहट कैसी
भाग्य हमारे साथ है
यह भी विचार किया है |
जरा सी है जिंदगानी
जीवन है एक समर भूमि
डट कर सामना करने का
वादा किया  है खुद से |
कायर पीठ दिखाकर
पीछे हट जाते हैं
पर हम पूरे  जोश से
खड़े हैं समर भूमि   में |
ईश्वर पर अटूट है श्रद्धा
समर में पीठ दिखा कर
भागेंगे नहीं कायर की तरह
 यही वादा किया है खुद से |
आशा