28 मार्च, 2018

भवसागर में नौका






काली अंधेरी रात में 
 डाली अपनी नौका मैंने
इस भवसागर में
पहले वायु  ने बरजा
पर एक न मानी
फिर गति उसकी
बढ़ने लगी मनमानी
जल यात्रा लगी बड़ी सुहानी
नौका ने गति पकड़ी 
लहरों से स्पर्द्धा की ठानी                        
साथ हवा के
 दूर बहुत निकल आए
वायु ने अब रुख बदला
हुआ सीमित चक्रवात में
नाव ने अनुसरण किया
 घूमने लगी भवर में
आसपास कोई न था
प्रभु तेरा ही सहारा था
तेरा नाम लब पर आया
भूली सारी मन की माया  
तुमने सुनी  अर्जी मेरी
गति नाव की हुई धीमीं
तब भी झूल रही
 जीवन मृत्यु के बीच
जीवन के लिए संघर्षरत
न जाने किनारा कब मिलेगा |
आशा

27 मार्च, 2018

तन्हाई






बचपन बीता खेल कूद में
कोई काम न धाम
फिर लगा किताबों का अम्बार
वह  समय भी कब बीता
नहीं रहा अब याद 
समय पंख लगा उड़ने लगा
ब्याह हुआ व्यस्तता बढ़ी  
पहले तो थी कुछ सीखने की ललक  
फिर एक व्यस्त दिनचर्या
सुबह से शाम तक जिन्दगी हुई एकरस
रात कब आती
मैं स्वप्नों में खो जाती
पर तब भी अपने लिए 
रहा अभाव समय का
यही आस रही 
वह समय कभी तो आएगा
जब अपने लिए भी समय होगा
खोजती रहती उन पलों को
जब मैं अकेली रह पाती
और होती मैं और  मेरी तन्हाई
पहले  मुझे चाह थी तन्हाई की
अब जब मैं हूँ एक कमरे में बंद
कुछ कर नहीं पाती
केवल सोचती रह जाती हूँ
ऐसी तन्हाई का क्या लाभ
जब उसका उपयोग न कर पाऊँ
जीवन भार सा लगता है
अब स्वप्न भी यदाकदा ही
याद रह पाते हैं
भूली भटकी यादों का जखीरा
रह गया है मेरे पास 
समय काटने को
तन्हाई की अब जरूरत नहीं
किसी को समय नहीं है
साथ बिताने को 
न ही आवश्यकता तन्हाई की
खुद के लिए कुछ करने को |

आशा

25 मार्च, 2018

आज के बच्चे कल के नेता



समय भी क्या कमाल है
चुनाव के मौसम में
हो रही धमाल है
 अब हाथापाई तक
उतर आई है जबाबी बोलचाल
 शर्म न लिहाज
केबल बेसुरे नारों की भरमार
पार की सारी मर्यादा
फिर होने लगा धमाल
शिक्षा दें भी तो कैसे किसे
कभी अनुशासन जाना नहीं
यही जब नेता बनेंगे
सम्हालेंगे बागडोर देश की
तब न जाने क्या होगा ?
लोकसभा विधान सभा में
काम तो नहीं पर
केवल दंगल ही होगा
कुश्ती का मंजार  होगा |
आशा











































23 मार्च, 2018

बदला

                                                                                                                                       
शब्द है बड़ा छोटा सा
पर अर्थ बड़ा गंभीर
जिसने उसे जैसा सोचा
उसी के अनुरूप कार्य किया   
बदले में वह क्या चाहता
प्रेम स्नेह ममता
 या कुछ नहीं
किसी से प्रेम करे तब
जरूरी नहीं बदले में
उसे भी प्यार मिले
निष्काम भाव से किया कार्य  
तब उसके मन को
 इच्छित फल के लिए
बेचैन नहीं होना होता
फल मिले य न मिले
उसे क्षोभ नहीं होता  
ना ही उपजती 
 भावना बदले की 
मन शांत बना रहता
 स्थिति को
 जब पहुँच पाएं
तब अपार   शान्ति
 हो चहु ओर
बदला मन को 
अशांति ही देता
सुख समृद्धि नहीं |
आशा