08 दिसंबर, 2018

चहरे पर दिखाई देते




 
 चेहरे पर भाव विषाद के
किसी को क्या दिखाना
साथ में हंसता खिलखिलाते
 चेहरे की झंडी हाथ में लिए घूमते
कोई नहीं जानता किस लिए ?
दो भाव एक साथ क्यूँ ?
क्या है यह एक राज
जिसे बांटना नहीं चाहते
किसी गैर के साथ शायद
इसी लिए या कोई और कारण
जिसे छुपाने की कोशिश
कर रहे बेकार किस लिए ?
अंतस में भभकती आग
अन्दर बाहर कितना अंतर
मुंह पर स्पष्ट झलकता विषाद
फिर भी कोशिश खुश होने की
अंतस में भभकती ज्वाला को
जीवित ही रखने की चाह
आखिर किस लिए ?
आशा

06 दिसंबर, 2018

शहनाई



प्रातः काल तबले की थाप
और  शहनाई वादन   
बड़ा सुन्दर नजारा  होता
 शुभ कार्यों का शुभारम्भ होता
प्रभाती का प्रारम्भ
 शहनाई से ही होता
 ध्वनि इतनी मधुर होती कि
कोई कार्य करने का
 मन ही न होता
केवल उसे सुनने के अलावा 
विवाह के रीत रिवाजों का सिलसिला
खुशी खुशी  प्रारम्भ होता
शहनाई होती जान
 किसी भी कार्यक्रम की
जब होती जुगलबंदी
 तबले और शहनाई वादन की  
 स्वर के  उतार चढ़ाव के साथ 
तबले की थाप की होती जुगलबंदी  
श्रोता को मन्त्र मुग्ध कर देतीं
शहनाई के स्वर मन को छू जाते
  यादों में सिमट जाते
 सुख हो या दुःख के कारज
यह  दोनो ही में बजती 
इसका वादन शुभ शगुन होता
है अनुपम वाद्य शहनाई 
मन में बज उठती  शहनाई
जब भी कोई   शुभ घड़ी आती|

आशा

05 दिसंबर, 2018

बधाई



जब पहला कदम रखा दुनिया में
 ख़ुशी चारो ओर फैली
पहला शब्द माँ कहा 
मौसी हुई निहाल
क्यूँ न चूम लूं तुम्हें
तुमसी बेटी पा कर
दी बधाई 
 तुम्हारी जननी को
दिन प्रति दिन प्रगति हुई
ठुमक ठुमक चलना सीखा
दौड़ती फिरती आँगन में
सतरंगी  फ्राक पहन कर
गोल गोल घूमती
एक उंगली का
 नृत्य दिखाती
माँ लेती उसकी बलाएं
सब देते बधाई
 देख तुम्हारी चतुराई
कोई प्यारी बहना कहता
 कोई दुलारी बेटी
पहला दिन स्कूल जाने का
 नया परिधान सिलवाया
नया बस्ता  नई पट्टी
 कॉपी किताब पेन्सिल
 जाने से पहले 
माँ ने  टीका लगा
भगवान से दुआ मांगी
बाक़ी सब ने दी बधाई
नए स्कूल में जाने के लिए
थकी हारी शाला से लौटी
सब ने पूंछा हाल 
बातें बढ़ चढ़ कर सुनाई
पट्टीपूजन के बाद
 पहला अक्षर “अ”
जो लिखा था वही
सब को दिखलाया
देते रहे सब बधाई
क्या  कुशाग्र बुद्धि पाई |
आशा

04 दिसंबर, 2018

साहिल






लहरें टकरातीं लौट जातीं
पर साहिल शिकायत नहीं करता
कभी दुखी भी नहीं  होता
जानता है प्रारब्ध अपना
चाहे कोई भी मौसम हो
तूफान आए तांडव मचाए
किनारा तोड़ने की
पूरी कोशिश करे
नुकसान तो होता है
पर इतना भी नहीं कि
 सुधार न हो पाए
 यूं तो धीरे धीरे
स्वतः  ठीक हो जाता है
या सुधारा जाता है
 जल का साथ सदा देता है
उसे बाँध कर रखता है
साहिल तो साहिल ही रहेगा
जल को कभी
भटकने न देगा |
आशा

02 दिसंबर, 2018

कीमतें














–मंहगाई का युग है
तेजी से उछल आया है
हर वस्तु की कीमत में
पर मनुष्य  सस्ता हुआ
महनत की मजदूरी भी
है  नहीं उसके  नसीब में
चूंकी तू खरा  कहता है
कीमतें बढ़ गईं
तेरे अशहारों की
लोगों का वश नहीं चलता
कोई कमी नहीं रखते
तुझे नीचा दिखाने में
सच्चाई के साथ चल कर
तूने उच्च पद पाया है
किसी से खेरात  नहीं ली है
अपने आप को दाव पर लगाया है
पंखफैला कर उड़ना ही है जिन्दगी 
 तभी कहने में आता है
कीमत बढ़ गई तेरे अशहारों की |
आशा