है बहाना रोज का
रोज रोज देर से आना
झूठे सच्चे बहाने बनाना
एक ही बात को
कई बार दोहराना
फिर भी मन को
दिलासा दिलाना
कुछ गलत नहीं किया है जाना
अनजानें में हुई भूल को
सच्चा कह कर मन बहलाना
यही फितरत है उसकी
मिल कर बिछुड़ने की
आदत है उसकी
फिर भी आदत को
सच का चोगा पहनाना
यही है मन का विचलन
उसने न जाना |
आशा