हो किस बात की फिक्र
मन सन्तुष्टि से भरा हुआ है
कोई इच्छा नहीं रही शेष
ईश्वर ने भरपूर दिया है |
है वह इतना मेहरवान कि
कोई नहीं गया भूखा मेरे द्वार से
होती चिंता चिता के सामान
पञ्च तत्व में मिलाने का
एहसास भी नहीं होता
कोई कष्ट नहीं होता |
जब जलने लगती चिता
आत्मा हो जाती स्वतंत्र
फिर चिंता फिक्र जैसे शब्द
लगने लगते निरर्थक |
तभी मैं फिक्र नहीं पालती
मैं हूँ संतुष्ट उतने में ही
जो हाथ उठा कर दिया प्रभू ने
और अधिक की लालसा नहीं |
चिंता चैन से सोने नहीं देती
हर समय बेचैनी बनी रहती
यही तो एक शिक्षा मिली है
खुद पर हावी मत होने दो |
जितना मिले उसी को अपना मानो
मन को ना विचलित करो
तभी खुशी से रह पाओगे
सफल जीवन जी पाओगे |
आशा