है दूर बहुत मेरा गांव
रोजी रोटी के लिए
निकला था घर से
अब पहुँचने को तरसा
फँस कर रह गया हूँ
महांमारी के चक्र व्यूह में
जाने अब क्या होगा
कब अपने गाँव पहुंचूंगा
अपने परिवार से मिलूंगा
मिल भी पाऊंगा या नहीं
या ऐसे ही दुनिया छोड़ जाऊंगा
पसोपेश में फंसा हुआ हूँ
जाऊं
या यहीं ठहरूं
कभी तो मन होता है
भगवान भरोसे सब को छोड़ दूं
कोई भी प्रयत्न है निरर्थक
फिर मन में कभी
आशा
जन्म लेती है
हार किसी से क्यों मानूं ?
जब तक जियूं जैसे जियूं
आशा
का दामन थामें रहूँ
ईश्वर पर आस्था सदा रहे
कर्मठ हूँ विश्वास मन का बना रहे
कभी ना छोडूं साथ आस्था का
जैसी भी परिस्थिति हो
उनका सामना करू |
आशा