बस न केवल सड़क पर चलती है ,
आम आदमी के दिलों को जोड़ती है ,
कहीं कोई आये ,कहीं कोई जाये ,
वह तो मनोभावों को तोलती है |
आशा
18 दिसंबर, 2009
16 दिसंबर, 2009
एक कहानी सूरज नारायण की
एक परिवार में रहते तो केवल तीन सदस्य थे ,पर महिलाओं में आपस में बिल्कुल नहीं बनती थी |सरे दिन
आपस में झगडती रहतीथी । घर में सारे दिन की कलह से सूरज नारायण बहुत तंग आ चुका था |न तो घर
में कोईबरकत रह गई थी और न ही कोई रौनक |
यदि कोई अतिथि आता ,सास बहू के व्यबहार से वह भी दुखी होकर जाता | धीरे धीरे घर के वातावरण
से उकता कर वह घर से बाहर अधिक रहने लगा |जब इतने से भी बात नहीं बनी ,एक दिन शान्ति की तलाश
में सूरज ने घर छोड़ दिया |
इधर पहले तो कोई बात न हुई पर जब वह नहीं आया तो सास बहू ने उसकी तलाश शुरू की |सास भानुमती
एक जानकर के पास गयी व अपने पुत्र की बापसी का उपाय पूंछा | बहू ने भी अपने पति को पाने के उपाय
अप्नी सहेलियों से पूछे|
सब लोगों से चर्चा करने पर उन्होंने पाया की यदि घर का अशान्त वातावरण,गंदगी व आपसी तालमेल का
अभाव रहे तो कोई भी वहां नहीं रहना चाहता , चाहे पति ही क्यूँ न हो |
दूसरे ही दिन सास भानुमती ने अपनी बहू सुमेधा को अपने पास बुलाया |लोगों द्वारा दिए गये सुझावों की
जानकारी उसे दी |पति के घर छोड़ देने से परेशान सुमेधा ने भी हथियार दल दिए व सास का कहना मानने लगी |
अब घर में सभी कार्य सुचारू रूप से होने लगे घर की साफ सफाई देखने योग्य थी |यदि कोई आता तो उसे
ससम्मान बैठाया जाता |आदर से जलपान कराया जाता तथा यथोचित भेट ,उपहार आदि देकर विदा किया जाता | धीरे धीरे सभी बाते सूरज तक पहुचने लगी |उसने माँ व सुमेधा की परीक्षा लेने के लिए एक कोढ़ी का वेश
धरण किया और अपने घर जाकर दरवाजा खटखटाया | जैसे ही दरवाजा खुला सुमेधा को अपने सामने पाया |
सुमेधा उसे न पहचान सकी |फिरभी वह व भानुमती उसकी सेवा करने लगी|आदर से एक पाट पर बैठकर
उसके पैर धुलाए , भोजन करवाया व पान दिया | भोजन के बाद सूरज ने सोना चाहा और सूरज नारायण के बिस्तर पर सोने की इच्छा जाहिर की |सास ने खा बुजुर्ग है सोजानेदो |सुमेधा ने उसे सोजाने दिया |
पर सूरज ने एकाएक उसका हाथ पकड़ा व कहा मई सूरज नारायण हूँ |इस पर सुमेधा ने कहा "मेरे
पति तो इस करवे की टोटी में से निकल सकते है ,यदि आप निकल जाओ तभी मई आपको अपना पति मानू"
सूरज ने बड़ी सरलता से करवे की टोंटी से निकल कर दिखा दिया व अपने असली रूप मे आगये |
अब घर का माहोल बदल गया व घर फिरसे खुश हाल होगया |
आपस में झगडती रहतीथी । घर में सारे दिन की कलह से सूरज नारायण बहुत तंग आ चुका था |न तो घर
में कोईबरकत रह गई थी और न ही कोई रौनक |
यदि कोई अतिथि आता ,सास बहू के व्यबहार से वह भी दुखी होकर जाता | धीरे धीरे घर के वातावरण
से उकता कर वह घर से बाहर अधिक रहने लगा |जब इतने से भी बात नहीं बनी ,एक दिन शान्ति की तलाश
में सूरज ने घर छोड़ दिया |
इधर पहले तो कोई बात न हुई पर जब वह नहीं आया तो सास बहू ने उसकी तलाश शुरू की |सास भानुमती
एक जानकर के पास गयी व अपने पुत्र की बापसी का उपाय पूंछा | बहू ने भी अपने पति को पाने के उपाय
अप्नी सहेलियों से पूछे|
सब लोगों से चर्चा करने पर उन्होंने पाया की यदि घर का अशान्त वातावरण,गंदगी व आपसी तालमेल का
अभाव रहे तो कोई भी वहां नहीं रहना चाहता , चाहे पति ही क्यूँ न हो |
दूसरे ही दिन सास भानुमती ने अपनी बहू सुमेधा को अपने पास बुलाया |लोगों द्वारा दिए गये सुझावों की
जानकारी उसे दी |पति के घर छोड़ देने से परेशान सुमेधा ने भी हथियार दल दिए व सास का कहना मानने लगी |
अब घर में सभी कार्य सुचारू रूप से होने लगे घर की साफ सफाई देखने योग्य थी |यदि कोई आता तो उसे
ससम्मान बैठाया जाता |आदर से जलपान कराया जाता तथा यथोचित भेट ,उपहार आदि देकर विदा किया जाता | धीरे धीरे सभी बाते सूरज तक पहुचने लगी |उसने माँ व सुमेधा की परीक्षा लेने के लिए एक कोढ़ी का वेश
धरण किया और अपने घर जाकर दरवाजा खटखटाया | जैसे ही दरवाजा खुला सुमेधा को अपने सामने पाया |
सुमेधा उसे न पहचान सकी |फिरभी वह व भानुमती उसकी सेवा करने लगी|आदर से एक पाट पर बैठकर
उसके पैर धुलाए , भोजन करवाया व पान दिया | भोजन के बाद सूरज ने सोना चाहा और सूरज नारायण के बिस्तर पर सोने की इच्छा जाहिर की |सास ने खा बुजुर्ग है सोजानेदो |सुमेधा ने उसे सोजाने दिया |
पर सूरज ने एकाएक उसका हाथ पकड़ा व कहा मई सूरज नारायण हूँ |इस पर सुमेधा ने कहा "मेरे
पति तो इस करवे की टोटी में से निकल सकते है ,यदि आप निकल जाओ तभी मई आपको अपना पति मानू"
सूरज ने बड़ी सरलता से करवे की टोंटी से निकल कर दिखा दिया व अपने असली रूप मे आगये |
अब घर का माहोल बदल गया व घर फिरसे खुश हाल होगया |
शिक्षक से
जीवन से होकर हताश
पलायन का है क्यों विचार
बन कर तुम नींव का पत्थर
दो ज्ञान हमें नव जीवन का |
आलस्य को त्याग कर
सुस्वप्न को साकार कर
भावी वृक्ष को साकार कर
दो ज्ञान हमें निज संबल का |
समय की नब्ज को पहचान
सत्य को समाज में उभर कर
तंग घेरों से उसे निकाल कर
दो ज्ञान हमें नवचेतन का|
आशा
14 दिसंबर, 2009
बरसात
हरी भरी वादी में
लगी ज़ोर की आग
लगी ज़ोर की आग
मन में सोचा
जाने होगा क्या हाल ।
जाने होगा क्या हाल ।
फिर ज़ोर से चली हवा
हुआ आसमान स्याह
उमड़ घुमड़ बादल बरसा
सरसा सब संसार |
बरस-बरस जब बादल हुआ उदास
हुआ आसमान स्याह
उमड़ घुमड़ बादल बरसा
सरसा सब संसार |
बरस-बरस जब बादल हुआ उदास
मैंने जब देखा तब पाया
पानी जम कर
बर्फ बन गया |
पानी जम कर
बर्फ बन गया |
ओला बन कर
झर-झर टपका
पृथ्वी की गोद भरी उसने
ममता से मन
पिघल-पिघल कर
झर-झर टपका
पृथ्वी की गोद भरी उसने
ममता से मन
पिघल-पिघल कर
पानी पानी पुनः हो गया |
काले भूरे रंग सुनहरे
कितने रंग सजाये नभ ने ।
उगते सूरज की किरणें
बुनने लगीं सुनहरे सपने
सारा अम्बर
पुनः हुआ सुनहरा
जीवन को जीवन्त कर गया !
आशाकितने रंग सजाये नभ ने ।
उगते सूरज की किरणें
बुनने लगीं सुनहरे सपने
सारा अम्बर
पुनः हुआ सुनहरा
जीवन को जीवन्त कर गया !
09 दिसंबर, 2009
ज़िन्दगी
यह ज़िन्दगी की शाम
अजब सा सोच है
अजब सा सोच है
कभी है होश
कभी खामोश है |
कभी खामोश है |
कभी थे स्वाद के चटकारे
चमकती आँखों के नज़ारे
पर सब खो गये गुम हो गये
खामोश फ़िजाओं में हम खो गये |
कभी था केनवास रंगीन
जो अब बेरंग है
मधुर गीतों का स्वर
बना अब शोर है
पर विचार श्रंखला में
ना कोई रोक है
और ना गत्यावरोध है |
हाथों में था जो दम
अब वे कमजोर हैं
चलना हुआ दूभर
बैसाखी की जरूरत और है
अपनों का है आलम यह
अधिकांश पलायन कर गये
बचे थे जो
वो कर अवहेलना
निकल गये
और हम बीते कल का
फ़साना बन कर रह गये |
आशा
चमकती आँखों के नज़ारे
पर सब खो गये गुम हो गये
खामोश फ़िजाओं में हम खो गये |
कभी था केनवास रंगीन
जो अब बेरंग है
मधुर गीतों का स्वर
बना अब शोर है
पर विचार श्रंखला में
ना कोई रोक है
और ना गत्यावरोध है |
हाथों में था जो दम
अब वे कमजोर हैं
चलना हुआ दूभर
बैसाखी की जरूरत और है
अपनों का है आलम यह
अधिकांश पलायन कर गये
बचे थे जो
वो कर अवहेलना
निकल गये
और हम बीते कल का
फ़साना बन कर रह गये |
आशा
07 दिसंबर, 2009
अतीत
चुकती ज़िन्दगी की अन्तिम किरण
सुलगती झुलसती तीखी चुभन
पर नयनों में साकार
सपनों का मोह जाल
दिला गया याद मुझे
बीते हुए कल की |
बीते हुए कल की |
यह पीले सूखे बाल सुमन
श्रम से क्लांत चले उन्मन
इस कृष्ण की धरा पर
नीर क्षीर बिन बचपन
दिला गया याद मुझे
उजड़े हुए वैभव की |
उजड़े हुए वैभव की |
नव यौवन स्वर की रुनझुन
बदला क्रन्दन में स्वर सुन
यह दग्ध ह्रदय
जलती होली सा आभास
दिला गया याद मुझे
होते हुए जौहर की |
होते हुए जौहर की |
कहाँ गया बीता वैभव
कहाँ गया अद्भुत गौरव ?
क्यों सूनी है अमराई ?
कोई राधा वहाँ नहीं आई
क्यों देश खोखला हुआ आज ?
इन सब का उत्तर कहाँ आज ?
केवल प्रश्नों का अम्बार
दिला गया आभास मुझे
रीतते भारत की |
आशा
क्यों देश खोखला हुआ आज ?
इन सब का उत्तर कहाँ आज ?
केवल प्रश्नों का अम्बार
दिला गया आभास मुझे
रीतते भारत की |
आशा
06 दिसंबर, 2009
कुछ क्षणिकाएं
(१) उम्र ने दी जो दस्तक तेरे दरवाजे पर ,
तेरा मन क्यों घबराया ,
इस जीवन में है ऐसा क्या ,
जिसने तुझे भरमाया ,
अब सोच अगले जीवन की ,
मिटने को है तेरी काया|
(२) तेरा मेरा बहुत किया ,
पर सबक लिया न कोई ,
शाश्वत जीवन की मीमांसा ,
जान सका न कोई ,
धू धू कर जल गई चिता ,
पर साथ न आया कोई |
आशा
तेरा मन क्यों घबराया ,
इस जीवन में है ऐसा क्या ,
जिसने तुझे भरमाया ,
अब सोच अगले जीवन की ,
मिटने को है तेरी काया|
(२) तेरा मेरा बहुत किया ,
पर सबक लिया न कोई ,
शाश्वत जीवन की मीमांसा ,
जान सका न कोई ,
धू धू कर जल गई चिता ,
पर साथ न आया कोई |
आशा
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