02 जून, 2010
पथिक से
प्रेम के प्रवाह में ,
उस ओर तुम जाना नहीं ,
जहाँ काँटे बिछे हों राह में |
उन पुष्पों से दूरी रखना ,
जो शूलों के साथ पले हों ,
वे कहीं किनारा ना कर लें ,
और काँटे तुम्हें छलनी कर दें |
उन पुष्पों से बच के रहना ,
जो छूते ही बंद कर लें तुमको ,
पूरी तरह निगल जायें ,
आत्मसात तुम्हें कर जायें|
उस राह भी तुम ना जाना ,
छुईमुई के पौधे हों जहाँ ,
तुम उनके जैसे ना बन जाना ,
स्पर्श मात्र से ना सकुचाना ,
अपना अस्तित्व ना खो देना |
जिस राह में बाधा अनेक ,
बाधा को शूल न समझ लेना ,
शूर वीर बन आगे बढ़ना ,
एक लक्ष्य को अपनाना ,
सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी ,
कीर्ति दिग्दिगंत में होगी |
ऐ पंथी मुझे भूल न जाना ,
यादों को न मिटने देना ,
अमित निशान जो पड़े पंथ पर ,
धूमिल उन्हें न होने देना ,
ना ही कभी मिटने देना |
तुममें साहस बहुत अधिक है ,
कुछ करने का जज़्बा भी है ,
उसे न कभी कम होने देना ,
गति को क्षीण न होने देना |
बीते कल को भूल न जाना ,
सब को सुरभित करते जाना |
आशा से रिश्ता रखना ,
निराशा पास न आने देना,
यदि कभी देखो मुड़ कर पीछे ,
तो अलविदा न कहना |
आशा
01 जून, 2010
आत्म संतुष्टि
उसके कोई बेटा नहीं था पर उसका भी कोई दुःख उसे न था |वह अपनी पत्नी के साथ प्रसन्नता पूर्वक रहता था |
एक दिन अचानक उसकी पत्नी जमुना बीमार पड़ गई |बहुत इलाज करवाया पर चतरू उसे बचा न सका | वह बहुत अकेला महसूस करने लगा |हर समय अपनी पत्नी की यादों में खोया रहता |समय के साथ उसने भी अकेले रहने का अभ्यास कर लिया |एक दिन उसने सोचा कि क्यों न वह अपनी बेटियों से मिल आये |इसी बहाने बच्चों से मिलना भी हो जायेगा और उसका मन भी बहल जाएगा |
सबसे पहले वह अपनी बड़ीबेटी ग्रीष्म के घर गया |उसका विवाह एक कृषक से हुआ था |उस साल पानी की कुछ
कमी थी |जल संकट से कैसे निपटें सब इसी सोच विचार में ब्यस्त थे |जब चतुरू चलने लगा उसने अपनी बेटी से पूंछा कि वह जब तीर्थ करने जाए तब उसके लिए क्या मांगे |बेटी बोली ,"पिताजी आपको तो पता ही है बिना पानी के सारी खेती सूख जाती है |आप इश्यर से भरपूर बारिश के लिए प्रार्थना करना "|
चतरू अपनी दूसरी बेटी शशी के घर गया |वह अपने पिता से मिल कर बहुत खुश हुई |शशी का विवाह एक कुम्हार से
हुआ था |वे दौनों मटके बनाते ,धुप में सुखाते और फिर पका कर बाजार में बेचते थे |तीन माह कब निकल गए पता ही न चला |चलते समय शशी से पूंछाकि उसे क्या चाहिए |वह बोली ,"पिताजी जब आप भगवन से प्रार्थना करें मेरे लिए
एक ही बात मांगना ,चाहे जो हो पानी न बरसे |पानी से मेरा बहुत नुकसान हो जाता है |"
चतरू सोच विचार करता हुआ अपनी तीसरी बेटी वर्षा के पास पहुंचा |वह बहुत साधारण स्थिती में रहती थी |पति पत्नी
दौनों काम पर जाते थे तब जा कर घर चलता था |कुछ दिन रुक कर चतरू ने तीर्थ जाने की इच्छा प्रगट की ||
जब वह चलने लगा बोला ,"बेटी मैं तीर्थ करने जा रहा हूं ,तेरे लिए भगवन से क्या मांगूं |" बेटी बोली ,
"पिताजी इश्वर की कृपा से आवश्यकता पूरी हो इतना सब कुछ है मेरे पास |मुझे और अधिक कि कोइ आवश्यकता नहीं है |
आप तो ईश्वर से सब के कल्याण के लिए कामना करना |"अपनी बेटी कि बात सुनकर चतरू को बहुत प्रसन्नता हुई |वह प्रसन्न
मन तीर्थ यात्रा पर चल दिया |
सच है आत्म संतुष्टि से बढ़ कर दुनिया में कुछ नहीं होता |इश्वर सब देखता है |
आशा
31 मई, 2010
प्यार का बुखार
ऐसा कोई मापक न बना,
जो प्यार का बुखार उतार सके ,
कोई मानक पैमाना न हुआ ,
जो सही आकलन कर पाए |
विज्ञानं ने प्रगति कर ली है ,
मशीनें भी कई बना ली हैं
पर ऐसे उपकरण की खोज में ,
वह भी अभी तक असफल है |
अब तक कोई मशीन न बनी ,
जो प्यार की तीव्रता नाप सके ,
ऐसी कोई दवा न बनी,
जो प्यार का बुखार उतार सके |
मन में जिसने प्यार किया ,
और प्रगट न कर पाया ,
वह शायद सबसे असफल रहा ,
बाज़ी मार नहीं पाया |
जिसको प्यार जताना आया ,
उसने ही मीर मार लिया ,
पूरा-पूरा प्यार पाने का ,
केवल उसने ही अधिकार लिया |
इक तरफा प्यार प्यार नहीं होता ,
वह टिकाऊ भी नहीं होता ,
प्यार की आग में दोनों झुलसें ,
विरही मन दर-दर भटके ,
तब प्यार सोने सा तपता है ,
जीवन में खरा उतरता है ,
क्या होगा थर्मामीटर का ,
जब प्यार का बुखार उतर जाये ,
जब आँखों में प्यार छलकता है ,
समझने वाला ही समझता है ,
आँखें ही प्यार की भाषा समझती हैं ,
शायद प्यार का पैमाना होती हैं |
आशा
29 मई, 2010
अहंकार
ओर विवेक भी करता दान ,
"सब कुछ है वह"यही सोच ,
दूसरों का करता अपमान ,
अहंकार जन्मजात नहीं होता ,
कमजोरों पर ही हावी होता ,
अहम् भाव से भरा हुआ वह ,
सब को हेय समझता है ,
यह भाव यदि हावी हो जाये ,
मनुष्य गर्त में गिरता है,
अहंकार से भरा हुआ वह ,
उस घायल योद्धा सा है ,
जो कुछ भी कर नहीं सकता ,
पर जीत की इच्छा रखता है ,
अहम् कोई हथियार नहीं ,
जिसके बल शासक बन पाये ,
स्वविवेक भी साथ ना दे पाये ,
तर्क शक्ति भी खो जाये ,
जो अहम् छोड़ पाया ,
सही दिशा खोज पाया ,
सफल वही हो पाया ,
यह कहावत सच्ची है ,
घमंडी का सिर नीचा होता है ,
समय अधिक बलवान है ,
सही सीख दे जाता है |
आशा
28 मई, 2010
मुक्तक
मैं तेरा साथ न निभा पाया ,
हमसफर बना और साथ चला ,
पर हमराज़ कभी ना बन पाया |
आशा
27 मई, 2010
जागृति
कभी कोई प्रतिकार न करना ,
मुझ पर अपना अधिकार न समझना ,
अबला नारी न मुझे समझना ,
दया की भीख नहीं चाहिये ,
मुझे अपना अधिकार चाहिये |
मैं दीप शिखा की ज्वाला सी ,
कब लपटों का रूप धरूँगी ,
सारी कठिनाई इक पल में,
ज्वाला बन कर भस्म करूँगी ,
मुझको निर्बल नहीं समझना ,
बहुत सबल हूँ वही रहूँगी |
मैं उत्तंग लहर हूँ सागर की ,
गति मैं भी कोई कमीं नहीं है ,
अधिकारों का यदि हनन हुआ ,
मुझ पर कोई प्रहार हुआ ,
तट बंध तोड़ आगे को बढूँगी ,
मुझे कमज़ोर कभी न समझना ,
सक्षम हूँ सक्षम ही रहूँगी |
कर्तब्य बोध से दबी रही ,
हर दबाव सहती रही ,
जब अधिकार की बात चली ,
सब के मुँह पर ताला पाया ,
अंतरात्मा ने मुझे जगाया ,
अधिकार यदि मैं ना पाऊँ ,
क्या लाभ सदा पिसती जाऊँ |
अब मैं जागृत और सचेत हूँ ,
नारी शक्ति का प्रतीक हूँ ,
नहीं कोई खैरात चाहिये ,
मुझे अपना अधिकार चाहिये |
मेरा स्वत्व मझे लौटा दो ,
अवसादों से नहीं भरूँगी ,
हर बाधा मैं पार करूँगी
कोई बोझ न तुम पर होगा
यदि आर्थिक रूप से स्वतंत्र रहूँगी |
समाज की प्रमुख इकाई हूँ मैं ,
स्वतंत्र रूप से रह सकती हूँ ,
कोई मर्यादा पार नहीं होगी ,
यदि अधिकारों की क्षति नहीं होगी |
मिलजुल कर सब साथ रहेंगे ,
नारी शक्ति को पहचानेंगे ,
कोई कटुता नहीं होगी ,
और समाज की प्रगति होगी ,
मेरा अधिकार जो मिल पाया ,
कर्तव्य में न कभी कमी होगी |
आशा
,
26 मई, 2010
उतार चढ़ाव जीवन के
जो शायद तुम्हारे स्मृति पटल से ,
तो विलुप्त हो गयीं कहीं खो गईं ,
पर मेरी आँखें नम कर गयीं ,
कभी तुम दूर हुआ करते थे ,
मुझे अपनी ओर आकर्षित करते थे ,
घंटों इंतज़ार में कटते थे ,
फिर भी जब हम मिलते थे ,
दोराहे पर खड़े रहते थे |
सदा अनबन ही रहती थी ,
सारी बातें अनकही रहतीं थीं ,
पहले हम कहाँ गलत थे ,
यह भी नहीं सोच पाते थे ,
हर बात आज याद आती है ,
मन को बोझिल कर जाती है |
प्यार का सैलाब उमड़ता ,
तब भी सोच यही रहता ,
पहले पहल कौन करे ,
मन की बात खुद क्यूँ कहे |
जो नयनों की भाषा न समझ पाये ,
दिल तक कैसे पहुँच पाये ,
मैंने लाख जताना चाहा ,
इशारों में कुछ कहना चाहा |
पर तुम मुझे न समझ पाये ,
मुझे पहचान नहीं पाये ,
तुम्हें सदा शिकायत ही रही ,
मैनें तुम्हें कभी प्यार न दिया ,
केवल सतही व्यवहार किया ,
मन की बात समझने का ,
नयनों की भाषा पढ़ने का ,
जज्बा सबमें नहीं होता ,
शायद उनमें से एक तुम थे |
मैनें लब कभी खोले नहीं ,
तुम मुझे रूखा समझ बैठे ,
तुमने झुकना नहीं जाना ,
अपने आप को नहीं पहचाना ,
तुम रूठे-रूठे रहने लगे ,
मुझसे दूर रहने लगे |
तुम्हें मनाना कठिन हो गया ,
मेरा अभिमान गुम होगया ,
जब भी तुम्हें मनाना चाहा ,
निराशा ही मेरे हाथ आई ,
आशावान न हो पाई ,
जब उम्र बढ़ी खुद को बदला ,
तुम में भी परिवर्तन आया ,
समय ने शायद यही सिखाया ,
हम मन की बातें समझने लगे ,
जीवन में रंग भरने लगे ,
एक दूजे को जब समझा ,
हमसाया हमसफर हो गये ,
मन से दोनों एक हो गये |
आशा