समझदार हूँ
अपना अस्तित्व है मेरा
मेरी सोच सबसे जुदा
यह भी कोई खता नहीं
बदलाव समाज में चाहूँ
अपने ढंग से रहना चाहूँ
ना मैं हूँ मोम की गुड़िया
ना ही भेड़ बकरी
हूँ देन आज के युग की
मेरे भी हैं अपने सपने
उनको पूरा करना चाहूँ
ऐरे गैरे चाहे जैसे से
विवाह मैं न कर पाऊँगी
दान दहेज के दानव से
खुद को दूर रखना चाहूँगी
मन चाहा रिश्ता जब होगा
तभी उसे स्वीकार करूँगी |
बड़ा परिवार ढेर से बंधन
हर समय दबाने की चाहत
बात-बात पर रोका टोकी
यह मुझे स्वीकार न होगी
मन को सब से दूर करेगी
सास ननद के ताने सुनना
घुटन भरे माहौल में रहना
हर पल मर-मर कर जीना
है मेरी फितरत नहीं
यह सब मैं सह न सकूँगी
सहज भाव से जी न सकूँगी
ठेस यदि मन को पहुँची
सब के साथ रह न सकूँगी
पहले भी अकेले रही
अब भी मैं स्वतंत्र रहूँगी |
यदि मेरा पढ़ना लिखना
उनको नहीं सुहाता है
पर मेरा है जीवन वही
उससे गहरा नाता है
ऐसे विचार रखने वालों से
ताल मेल न हो पायेगा
उन्नति मार्ग अवरुद्ध होगा
जीवन नर्क हो जायेगा
हूँ आज की नारी
अपनी अस्मिता मिटने न दूँगी
जाग्रत हूँ जाग्रत ही रहूँगी |
आशा