क्षुधा के रूप अनेक
कुछ की पूर्ति होती सम्भव
पर कुछ अधूरे ही रह जाते
विवेक शून्य तक कर जाते |
हर रूप होता विकराल इसका
हाहाकार मचा जाता
क्षुधा की तृप्ति ना होने पर
गहन क्षोभ जन्म लेता |
हो भूख उदर या तन की
उससे है छुटकारा सम्भव
प्रयत्न तो करना पड़ता है
पर होता नहीं असंभव |
होती क्षुधा विलक्षण मन की
सब्ज बाग दिखाता है
कभी पूर्ति होती उसकी
कभी अधूरी रह जाती है |
आत्मा की क्षुधा
परमात्मा से मिलने की
कभी समाप्त नहीं होती
उस क्षण की प्रतीक्षा में
जाने कहाँ भटकती फिरती |
करते ध्यान मनन चिंतन
ईश्वर से एकात्म न होने पर
मन भी एकाग्र ना हो पाता
है मार्ग दुर्गम इतना कि
क्षुधा शांत ना कर पाता |
आशा
कुछ की पूर्ति होती सम्भव
पर कुछ अधूरे ही रह जाते
विवेक शून्य तक कर जाते |
हर रूप होता विकराल इसका
हाहाकार मचा जाता
क्षुधा की तृप्ति ना होने पर
गहन क्षोभ जन्म लेता |
हो भूख उदर या तन की
उससे है छुटकारा सम्भव
प्रयत्न तो करना पड़ता है
पर होता नहीं असंभव |
होती क्षुधा विलक्षण मन की
सब्ज बाग दिखाता है
कभी पूर्ति होती उसकी
कभी अधूरी रह जाती है |
आत्मा की क्षुधा
परमात्मा से मिलने की
कभी समाप्त नहीं होती
उस क्षण की प्रतीक्षा में
जाने कहाँ भटकती फिरती |
करते ध्यान मनन चिंतन
ईश्वर से एकात्म न होने पर
मन भी एकाग्र ना हो पाता
है मार्ग दुर्गम इतना कि
क्षुधा शांत ना कर पाता |
आशा