है बेचैन असुरक्षित
अपनी राह तलाश रही
जीवन की शाम के
लिए आशियाना खोज रही |
अपनों ने किनारा किया
बोझ उसे समझा
बेगानों में अपने पन का
अहसास तलाश रही |
क्या कुछ नहीं किया उसने
उन सब के लिए
जो आज भुला बैठे उसे
अपने में ही व्यस्त हुए |
आज भी याद है उसे
कैसे उन्हें पाला पोसा
खुद ने कठिनाई झेली
पर उनकी प्रगति नहीं रोकी |
आज वही उसे छोड़ गए
वृद्ध आश्रम के कौने में
असुरक्षा की भावना
मन में समा गयी है |
ना कभी ममता जागी
ना ही उसके कष्टों पर
मन में कभी मलाल आया
अपने ही घर के लिए
वह पराई हो गयी |
आज मातृ दिवस मनाया तो क्या
जाने कितनी माँ हैं ऐसी
जो स्नेह से हैं वंचित
इस संवेदन शून्य दुनिया में
भरी हुई असुरक्षा से
जूझ रही हैं जिंदगी से |
आशा
अपनी राह तलाश रही
जीवन की शाम के
लिए आशियाना खोज रही |
अपनों ने किनारा किया
बोझ उसे समझा
बेगानों में अपने पन का
अहसास तलाश रही |
क्या कुछ नहीं किया उसने
उन सब के लिए
जो आज भुला बैठे उसे
अपने में ही व्यस्त हुए |
आज भी याद है उसे
कैसे उन्हें पाला पोसा
खुद ने कठिनाई झेली
पर उनकी प्रगति नहीं रोकी |
आज वही उसे छोड़ गए
वृद्ध आश्रम के कौने में
असुरक्षा की भावना
मन में समा गयी है |
ना कभी ममता जागी
ना ही उसके कष्टों पर
मन में कभी मलाल आया
अपने ही घर के लिए
वह पराई हो गयी |
आज मातृ दिवस मनाया तो क्या
जाने कितनी माँ हैं ऐसी
जो स्नेह से हैं वंचित
इस संवेदन शून्य दुनिया में
भरी हुई असुरक्षा से
जूझ रही हैं जिंदगी से |
आशा