कोई नहीं आता
वह आस लगाए रहती है |
जाने कितने कष्ट सहे थे
उन्हें बड़ा करने में
पर सब तिरोहित हो जाते थे
चहरे पर भोली मुस्कान देख |
अब वही बातें याद आती हैं
गहराई तक साल जाती हैं
सात फेरे क्या लिए
वे वर्तमान में खो गए
किसी और के हो गए |
जो थे कभी माँ के बहुत निकट
सब हैं अब अलग
है गहरी खाई दौनों के संबंधों में |
बस एक ही वाक्य याद है उसे
"आपने क्या विशेष किया ,
यह तो था कर्तव्य आपका "
ये शब्द पिघलते सीसे से
जब कान में पड़ते हैं
वह अंदर तक दहल जाती है |
अंदर से आह निकलती है
क्या वे कभी बूढ़े नहीं होंगे
उनके बच्चे भी वही करेंगे
जो आज वे कर रहे हैं |
फिर भी जाने क्यूँ
वह राह देखती रहती है
बच्चों के बच्चों की
हल्की सी आहट भी उसे
कहीं दूर ले जाती है
अपने बच्चों के बचपन में
पल भर के लिएभूल जाती है
वे किसी और के हो गए हैं |
आशा