कड़ी धूप लू के थपेड़े
बहुत कष्ट देते हैं
जब पैरों में चप्पल ना हों
डम्बर तक पिघलने लगता है
पक्की सड़क यदि हो |
धरती पर पडती दरारें
गहरी होती जाती हैं
लेती रूप हवा अंधड का
गुबार उठता रोज धूल का
बढता जाता कहर गर्मी का |
फिर भी कोई काम नहीं रुकता
निर्वाध गति से चलता रहता
बस गति कुछ धीमी होती है
दोपहर में सड़कें अवश्य
सूनी सी लगती हैं |
यह तपन गर्मी की चुभन
ऊपर से आँख मिचौली बिजली की
हर कार्य पर भारी पड़ती है
जाने कितने लोगों का
जीवन बदहाल कर देती है |
होता जन जीवन अस्त व्यस्त
पर एक आशा रहती है
इस बार बारिश अच्छी होगी
क्यूंकि धरती तप रही है
उत्सुक है प्यास बुझाने को |
अच्छी बारिश की भविष्य वाणियां
मन को राहत देती हैं
कभी सत्य तो कभी असत्य भी होती हैं
फिर भी वर्तमान में
कटते पेड़ तपती दोपहर
और बिजली की आवाजाही
सारी सुविधाओं के साधन
यूँ ही व्यर्थ कर देती हैं |
सब इसे सहते हैं सह रहे हैं
आगे भी सहते जाएंगे
प्रकृती से छेड़छाड़ का
होता है यही परिणाम
इससे कैसे बच पाएगे |
आशा