मैं चाहती हूँ
सोचती हूँ दूर कहीं जंगल में
घनघोर घटाओं से आच्छादित
व्योम तले बैठ नयनों में समेट
उस सौंदर्य को
अपने मन में छुपा लूं
और उसी में खो जाऊं |
यह भूल जाऊं कि मैं क्या हूँ
मेरा जन्म किस लिए हुआ
इस घरा पर आने का
उद्देश्य पूरा हुआ या अधूरा रहा |
बस अपने आस पास
प्रकृति का वरद हस्त पा
मन की चंचलता से
बेचैनी से कहीं दूर जा
एक नए आवरण से
खुद को ढका पाऊँ |
सताए ना भूख प्यास
ना ही रहूँ कभी उदास
चिंता चिता ना बन जाए
केवल हो चित्त शांत
खुलें अंतर चक्षु व मुंह से निकले
है यही जीवन का सत्व
बाकी है सब निरर्थक |
मधुर कलरव पक्षियों का
चारों ओर छाए हरियाली
हो कलकल करती बहती जल धारा
उसी में खो जाऊं |
हर ऋतु का अनुभव करू
आनंद लूं
एकाकी होने के दुख से
दूर रहूँ सक्षम बनूँ
दुनियादारी से दूर बहुत
सुरम्य वादियों में खो जाऊं
वहीँ अपना आशियाना बनाऊँ |
आशा