बनती मिटती कभी सिमटतीं
आती जाती लकीरें चेहरों पर
मुस्कान ठहरती कुछ क्षण को
फिर कहीं तिरोहित हो जाती
भाव भंगिमा के परिवर्तन
परिलक्षित करते अंतर मन |
वे सब भी क्षणिक लगते
होते हवा के झोंके से
जो आए ले जाए
उन लम्हों की नजाकत को
लगते कभी स्वप्नों से
प्रायः जो सत्य नहीं होते
कुछ पल ठहर विलुप्त होते |
भिन्न नहीं है दरिया भी
बहता जल उठाती लहरें
टकरा कर चट्टानों से
मार्ग ही बदल देते
अवरोध को नगण्य मान
बहती जाती अविराम
पर चिंतित, कब जल सूख जाए
अस्तित्व ही ना गुम हो जाए
यही सोच पल भर मुस्काते
सुख दुःख तो आते जाते
है जीवन क्षणभंगुर
क्यूँ न वर्त्तमान में जी लें |
आशा