नहीं स्वीकार कोइ बंधन
जहां चाहता वहीं पहुंचता
उन्मुक्त भाव से जीता
नियंत्रण ना कोइ उस पर
निर्वाध गति से सोचता
जब मन स्वतंत्र
ना ही नियंत्रण सोच पर
फिर अभिव्यक्ति पर ही रोक क्यूं ?
जब भावना का ज्वार उठता
अपना पक्ष समक्ष रखता
तब वर्जना सहनी पडती
अभिव्यक्ति परतंत्र लगती |
कानूनन अधिकार मिला
अपने विचार व्यक्त करने का
कलम उठाई लिखना चाहा
कारागार नजर आया |
अब सोच रहा
है यह किसी स्वतंत्रता
अधिकार तो मिलते नहीं
कर्तव्य की है अपेक्षा |
आशा