22 अगस्त, 2012
19 अगस्त, 2012
सबब उदासी का
रहती निष्प्रह नितांत अकेली
दिखती मितभाषी
स्मित मुस्कान बिखेरती
उदासी फिर भी छाई रहती
उससे अलग न हो पाती
पर सबब उदासी का
किसी से न बांटती
जब भी मन टटोलना चाहा
शब्द अधरों तकआकार रुक जाते
अश्रुओं के आवेगा में खो जाते
असहज हो अपने आप में खो जाती
फिर भी हर बात उसकी
अपनी और आकृष्ट करती
कई विचार आते जाते
पर निष्कर्ष तक न पहुच पाते
एक दिन वह चली गयी
संपर्क सूत्र तब भी ना टूटे
समाज सेवा ध्येय बनाया
पूरी निष्ठा सेअपनाया
व्यस्तता बढती गयी
उदासी फिर भी न गयी
वह दुनिया भी छोड़ गयी
कोइ उसे समझ ना पाया
क्या चाहती थी जान न पाया
था क्या राज उदासी का
समझ नहीं पाया
राज राज ही रह गया
उसी के साथ चला गया |
आशा
उदासी फिर भी छाई रहती
उससे अलग न हो पाती
पर सबब उदासी का
किसी से न बांटती
जब भी मन टटोलना चाहा
शब्द अधरों तकआकार रुक जाते
अश्रुओं के आवेगा में खो जाते
असहज हो अपने आप में खो जाती
फिर भी हर बात उसकी
अपनी और आकृष्ट करती
कई विचार आते जाते
पर निष्कर्ष तक न पहुच पाते
एक दिन वह चली गयी
संपर्क सूत्र तब भी ना टूटे
समाज सेवा ध्येय बनाया
पूरी निष्ठा सेअपनाया
व्यस्तता बढती गयी
उदासी फिर भी न गयी
वह दुनिया भी छोड़ गयी
कोइ उसे समझ ना पाया
क्या चाहती थी जान न पाया
था क्या राज उदासी का
समझ नहीं पाया
राज राज ही रह गया
उसी के साथ चला गया |
आशा
16 अगस्त, 2012
उपहार प्रकृति के
नव निधि आठों सिद्धि छिपी
इस वृह्द वितान में
जब भी जलधर खुश हो झूमें
रिमझिम बरखा बरसे
धरती अवगाहन करती
अपनी प्रसन्नता बिखेरती
हरियाली के रूप में |
नदियां नाले हो जल प्लावित
बहकते ,उफनते उद्द्वेलित हुए
बहा ले चले सभी अवांछित
अब उनका स्वच्छ जल
है संकेत उनकी उत्फुल्लता का
वह खुशी शब्दों में व्यक्त न हो पाई
पर ध्वनि अपने मन की कह गयी |
पर सागर है धीर गंभीर
जाने कितना गरल समेटा
उसने अपने उर में
कोइ प्रभाव उस पर न हुआ
रहा शांत स्थिर तब भी
|
14 अगस्त, 2012
उत्साह कहीं खो गया
उत्साह कहीं खोगया
जब स्वतंत्र हुए बहुत खुश थे
था गुमान उपलब्धि पर
उत्साह से भरे थे
रहता था इंतज़ार
स्वतन्त्रता दिवस का
स्वतन्त्रता दिवस का
इसे त्यौहार सा मनाने का
फिर सर उठाया चुपके से
अनगिनत समस्याओं ने
सोचा समय तो लगेगा
समृद्धि के आगमन
में
पर ऐसा कुछ भी न हुआ
दूकान लगी समस्याओं की
विसंगतियाँ बढ़ने लगीं
दरार पड़ी भाईचारे में
हुआ धन वितरण असमान
गरीब और गरीब हो गया
धनिक वर्ग की चांदी हुई
धनिक वर्ग की चांदी हुई
भृष्टाचार ने सीमा लांघी
महंगाई भी पीछे न रही
बढती हुई जनसंख्या ने
प्राकृतिक आपदाओं ने
समृद्धि पर रोक लगाई
आम आदमी पिसने लगा
समस्याओं की चक्की में
प्रतिवर्ष स्वतन्त्रता दिवस
नए स्वप्न सजा जाता
तिरंगे की छाँव तले
झूठे वादे करवाता
झूठे वादे करवाता
पर सपने सच नहीं होते
चीनी की मिठास भी
होने लगी कम कम सी
धुनें देश भक्ति गीतों की
आकृष्ट अब नहीं
करतीं
लगती सब औपचारिकता
उत्साह कहीं खो गया
पहले भी विकासशील थे
आज भी वहीँ हैं
आज भी वहीँ हैं
लंबी अवधि के बाद भी
आगे नहीं बढे हैं |
समय का काँटा
थम सा गया है
थम सा गया है
समृद्धि से कोसों दूर
अब भी जी रहे हैं
है बड़ा अंतर सिद्धांत
और व्यवहार में |
आशा
आशा
12 अगस्त, 2012
तम और गहराता
तम और अधिक गहराता
गैरों सा व्यवहार उसका
जीवन बेरंग कर जाता
कोई अपना नहीं लगता
जीना बेमतलब लगता
जब कोई साथ नहीं देता
मन में कुंठाएं उपजाता
खुशी जब चेहरे पर होती
सहना भी उसे
मुश्किल होता
यही परायापन यही बेरुखी
अंदर तक सालती
लगती अकारथ जिंदगी
उदासी घर कर जाती
घुटन इतनी बढ़ जाती
व्यर्थ जिंदगी लगने लगती
जाने कब तक ढोना है
इस भार सी जिंदगी को
निराशा के गर्त में फंसी
इस बेमकसद जिंदगी को |
आशा
10 अगस्त, 2012
वन देवी
खो जाती प्रकृति में
विचरण करती उसके
छिपे आकर्षण में|
वह उर्वशी घूमती
झरनों सी कल कल करती
तन्मय हो जाती
सुरों की सरिता में |
साथ पा वाद्ध्यों का
देती अंजाम नव गीतों को
हर प्रहर नया गीत होता
चुनाव वाद्ध्यों का भी अलग होता
वह गाती गुनगुनाती
कभी क्लांत तो कभी शांत
जीवन का पर्याय नजर आती
लगती ठंडी बयार सी
जहां से गुजर जाती
पत्तों से छन कर आती धूप
सौंदर्य को द्विगुणित करती
समय ठहरना चाहता
हर बार मुझे वहीँ ले जाता
घंटों बीत जाते
लौटने का मन न होता |
वह कभी उदास भी होती
जब मनुष्य द्वारा सताई जाती
सारी शान्ति भंग हो जाती
मनोरम छवि धूमिल हो जाती |
है वही वन की देवी
संरक्षक वनों की
विनाश उनका सह न पाती
बेचैनी उसकी छिप न पाती |
आशा
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