22 सितंबर, 2012

पहरा

क्षणिका :-
विचारों की 
सरिता की गहराई 
 नापना चाहता 
पंख फैला नीलाम्बर में 
उड़ना चाहता 
तारों  की गणना
करना भी चाहता
पर चंचल मन
 स्थिर नहीं रहता
 उस पर भी
रहता पहरा |
आशा

19 सितंबर, 2012

शिकायत


है मुझे शिकायत तुमसे
दर्शक दीर्घा में बैठे
आनंद उठाते अभिनय का
सुख देख खुश होते
दुःख से अधिक ही
द्रवित हो जाते
 जब तब जल बरसाते
अश्रु पूरित नेत्रों से
आपसी रस्साकशी देख 
उछलते अपनी सीट से
फिर वहीँ शांत हो बैठ जाते
जो भी प्रतिक्रिया होती
अपने तक ही सीमित रखते
मूक दर्शक बने रहते
अरे नियंता जग के
यह कैसा अन्याय तुम्हारा  
तुम अपनी रची सृष्टि के
कलाकारों को देखते तो हो
पर समस्याओं से उनकी
सदा दूर रहते
उन्हें सुलझाना नहीं चाहते
बस मूक दर्शक ही बने रहते |
क्या उनका आर्तनाद नहीं सुनते
 ,या जानबूझ कर अनसुनी करते
या  मूक बधिर हो गए हो
क्या तुम तक नहीं पहुंचता
कोइ समाचार उनका
 हो निष्प्रह सम्वेदना विहीन
क्यूँ नहीं बनते सहारा उनका |
आशा






17 सितंबर, 2012

सिद्धि विनायक (गणेश चतुर्थी )

  बहुत पुरानी बात है |राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक ब्राह्मण  रहता था |उसका नाम ॠश्य शर्मा था |उसके एक पुत्र हुआ पर वह उसको खिला भी न सका और अकाल मृत्यु को प्राप्त होगया |
            अब बच्चे के लालनपालन की जिम्मेदारी उसकी पत्नी पर आ गयी |वह आर्थिक रूप से बहुत कमजोर थी और भिक्षा मांगकर अपना औरअपने बच्चे का भरण पोषण करती थी |
       वह रोज गोबर से बनी गणपति की प्रतिमा का पूजन करती थी और  बहुत श्रद्धा रखती थी |एक दिन बच्चे ने उस प्रतिमा को खिलोना समझ कर अपने गले में लटका लिया और खेलता खेलता बाहर निकल गया |
         एक कुटिल कुम्हार की बहुत दिनों से उस पर नजर थी |उसने बच्चे को पकड़ कर जलते हुए आवा में डाल दिया |इधर माता का पुत्र वियोग में बुरा हाल था |वह गणपति का पूजन कर विलाप करने लगी और पुत्र की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगी |
दूसरे दिन जब कुम्हार ने आवा खोला तब उसने बच्चे को घुटने घुटने पानी में खेलते हुए पाया |कुम्हार को बहुत मानसिक ग्लानि  हुई |उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था |वह रोता रोता राजा के पास पहुंचा और अपने गुनाह को कबूल किया |
           वह बोला ,"राजन मुझे कुछ मिट्टी के बर्तन जल्दी से पकाने थे आवा जलने का नाम न लेता था |एक तांत्रिक ने बताया कि यदि किसी बच्चे की बलि गुप्त रूप से चढ़ाओगे तो तुम्हारी समस्या का निदान हो जाएगा |तभी से बालक तलाश रहा था और विधवा के इस बच्चे को आवा में ड़ाल दिया था "|पर जब सुबह बालक को आवा में खेलते देखा तो भय के मारे यहाँ आ गया "|
राजा बहुत न्याय प्रिय था उसने अपने आमात्य को भेज कर सारी सत्यता की जानकारी प्राप्त की और ब्राह्मणी को बुला कर बच्चा उसे सौंप दिया |पर वह आश्चर्य चकित था कि बालक जलने की जगह पानी में कैसे खेल रहा था |बच्चे की माँ से  प्रश्न किया कि क्या कोई  जादू टोना किया था जो बालक पर आंच तक नहीं आई |
    अपने बच्चे को पा कर ब्राह्मणी  बहुत प्रसन्न थी और राजा को बहुत बहुत आशीष देते हुए बोली "हे राजन मैंने कोई जादू नहीं किया  बस रोज विघ्न हरता सिद्धि विनायक की सच्चे मन से पूजा करती हूँ और चतुर्थी का व्रत  रखती हूँ |शायद उसी का फल आज मुझे मिला है "
        राजा बहुत अभिभूत हुआ और ब्राह्मणी  से कहां ,"तुम बहुत पुण्यात्मा और धन्य हो तुमने हमें सही राह दिखाई है अब मैं और मेरी प्रजा भी सिद्धि विनायक समस्त विघ्न के हरता का विधिवत पूजन अर्चन करेंगे  "
       तभी से गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता है | यह  समस्त सिद्धि देने वाला  व्रत है |
आशा 




14 सितंबर, 2012

व्यथित



-धधकती आग ढहते मकान
कम्पित होती पृथ्वी  
कर जाती विचलित
मचता हाहाकार
जल मग्न गाँव डूबते धरबार
हिला जाते सारा मनोबल
सत्य असत्य की खींचातानी
लगने लगती बेमानी
करती भ्रमित झझकोरती
क्षणभंगुर जीवन की व्यथा
छल छिद्र में लिप्त खोजता अस्तित्व
हुतात्मा सा जीता इंसान
कई विचार मन में उठते
आसपास जालक बुनते
मन में होती उथलपुथल
हूँ संवेदनशील  जो देखती
उसी में खोजती रह जाती हल
विचारों की श्रंखला रुकती नहीं
कहीं विराम नहीं लगता
हैं सब नश्वर फिर भी
मन विचलित होता जाता
जाने क्यूं व्यथित होता |
आशा 

11 सितंबर, 2012

हो कौन ?



हो कौन ?कहाँ से आए ?
मकसद क्या यहाँ आने का ?
इधर उधर की ताका झांकी
निरुद्देश्य नहीं लगती
चिलमन की ओट से जो चाँद देखा
क्या उसे खोज रहे हो ?
उससे मिलने की चाह में
 या ऐसे ही धूम रहे हो |
कारण कौशल से छिपाया
मुखौटा चहरे पर लगाया
पर आँखें उसे ही खोजतीं
जिसे रिझाने आए हो |
यदि थोड़ी भी सच्चाई होती
लोगों से आँखें नहीं चुराते
प्रश्नों से बचना न चाहते
झूठ का अभेद्य कवज
अपने साथ नहीं ढोते |
चेहरा तो छिपा लिया तुमने
पर आँखों का क्या करोगे
अक्स सच्चाई का
उनसे स्पष्ट झांकता |
सब से छिपाया नहीं बताया
अपने मन के भावों को
कैसे छिपा पाओगे
प्रेम के  आवेग को
गवाह हैं आँखें तुम्हारी
 उजागर होते भावों की |
आशा




08 सितंबर, 2012

शुभ कामनाएं

 मेरी दूसरी पुस्तक अंतःप्रवाह के लिए परम आदरणीय शिक्षावित सुश्री इंदु हेबालकर की शुभकामनाएं आप सब से बांटना चाहती हूँ :-
शुभकामनाएं
अन्तः प्रवाह कविता संग्रह में मानव जीवन केअन्तः प्रवाह पर प्रकाश डालने का कवियित्री का प्रयास 
सराहनीय है |बधाई आशा जी को कि वह इस अंतःप्रवाह को अनुभूत कर सकीं और उसकी भावाव्यक्ति 
शब्दों में कर सकीं कविताओं के माध्यम से |
इस संग्रह में अंतर्धारा के संगम के स्त्रोत से बहती विभिन्न धाराओं की अभिव्यक्ति है -संगम से उत्पन्न
विभिन्न धाराएं ,उनमें निरंतर बहती जीवन नैया ,विभिन्न भावनाओं की अनुभूतियां हैं |जीवन नैया में चप्पू चलाना ,हिचकोले खाना ,डगमगाना ,और फिर भी तट तक पहुँच जाना ,यही जीवन संघर्ष है और विभिन्न अनुभूत जीवन धाराएं हैं |जीवन की गति में प्रतिबन्ध लगना ,निष्कासन ,सहायता न मिलना ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस फिर भी न रुकना प्रवाहमान होना भावना की अभिव्यक्ति करना ,यही जीवन की अंतर्धारा से उत्पन्न विभिन्न प्रवाह हैं ,दृश्यमान प्रवाह है मानव जीवन में |
          शिक्षकीय व्यवसाय की धारा में प्रवाहित हमारी नौकाएं एक दूसरे को निहारतीं ,संपर्क में रहीं शासकीय उच्चतर माँ. वि .दौलत गंज उज्जैन में व्याख्याता  (अंग्रेजी )के पद पर कार्य रत रहीं आशा जी ने अपनी माता जी श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना "किरण"से काव्य सृजन करने की जन्मजात प्रेरणा प्राप्त की और सेवा निवृत्ति के बाद कम्प्युटर पर शब्द रूप में अभिव्यक्ति करती रहीं  हैं |मैं भी सेवा निवृत्ति के बाद उनके ब्लॉग "आकांक्षा "पर
लिखित कविताओं का आनंद उठाती रही |और एक दिन कहा आशा जी अपनी कविताओं को पुस्तक रूप में छापो ना |प्रसिद्धि के लिए नहीं अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए |बधाई कि वह उन्होंने कर दिखाया |यह उनका दूसरा काव्य संग्रह है |इसके लिए शतशः  बधाई शुभकामनाएं और आशीर्वाद |बधाई के पात्र है श्री एच  .के. सक्सेना जी  भी जिन्होंने अपनी पत्नी को प्रोत्साहित किया और सहायता की पुस्तकों की  प्रकाशन प्रक्रिया  में |
   मैं और एह .के.सक्सेना सक्सेना शासकीय स्नातकोत्तर शिक्षा महा विद्यालय में वर्षों तक कार्यरत रहे और आशा जी हमारे शिक्षा महाविध्यालय की छात्रा रहीं |दौनों को सृजनात्मक प्रयास के लिए बधाई और आशीर्वाद |
   अन्तः प्रवाह काव्यसंग्रह में जीवन के विभिन्न आयामों की अभिव्यक्ति है |जीवन के ढलान पर 'जीवन की एक शाम ' ,'चुकाती जिंदगी की अंतिम किरण'की चुभन और उम्र की दस्तक ,जीवन के दरवाजे पर कुछ पंक्तियाँ मन को उद्द्वेलित करती हैं |जीवन के सत्य की और इंगित करती हैं |कविताओं की कुछ पंक्तियों का अवलोकन करें |
जिंदगी
         यह जिंदगी की शाम अजब सा सोच है 
कभी है होश  तो कभी खामोश है 
हाथों में था जो दम 
 अब वे कमजोर हैंचलना हुआ दूभर 
बैसाखी की जरूरत और है 
अपनों  का है यह आलम 
अधिकांश पलायन कर गए 
बचे  थे जो 
अवहेलना कर निकल गए 
और हम बीते कल का
 फसाना बन कर रह गए ||

अतीत
अतीत की और झांकती हुई कवियित्री कहती हैं :-
चुकती जिंदगी की अंतिम किरण 
सुलगती  झुलसती तीखी चुभन 
पर नयनों में साकार 
सपनों  का मोह जाल
दिला गया याद मुझे 
बीते हुए कल की |
जिंदगी को भरपूर जिया है में ये पंक्तियाँ देखिये -
मैंने जिंदगी को 
कई कौणों  से देखा है
हर कौण है विशिष्ट 
हर रंग निराला है 

    कवयित्री ने काव्य को सरल सरल साहित्यिक शब्दों में अभिव्यक्त कर पुस्तक अंतःप्रवाह को प्रभावशाली बनाया है |आपको हार्दिक आशीर्वाद |इसी प्रकार लिखती रहें और "एक छोटी पतंग रंग विरंगी न्यारी न्यारी उड़ाती रहें "कठिन पहेली से रिश्तए का हल बताती रहें |शतशःबधाई आपकी अन्तः प्रेरणा को "अंतःप्रवाह की धारा को ||
सुश्री इन्दु हेबालकर 
सेवा निवृत्त संचालक शिक्षा संस्थान म.पर.
एवं प्राचार्य शासकीय स्नातकोत्तर शिक्षा महा विद्यालय 
भोपाल ( म.प्र.)