बेचारे बगदी लाल जी
,करन चले व्यापार |
महंगाई की मार का
,सह न पाए वार ||
है लाभ क्या न जानते
,झुझलाते पा हार |
होते विचलित हानि से
,जीवन लगता भार ||
किसी सलाह से बचते ,मन मे उठता ज्वार |
अनजाने बने रहते ,जब
भी होता वार ||
दखल देते बेहिसाब और
बदलते भेष |
अवमानना से अपनी ,उनको लगती ठेस||
गणित हानि लाभ का
,सब विधि के आधीन |
धनिक बनने की चाह
में ,इस पर गौर न कीन्ह ||
खड़ा हुआ सच सामने
,धूमिल कल की याद |
मीठी यादें आज की
,भविश्य की सौगात ||
आशा