प्यार भरा दीवानापन
कहाँ नहीं खोजा उसने
जब भी हाथ आगे बढ़ाया
मृग तृष्णा में फंसा
पाया
गुमनाम जिंदगी जीते
जीते
अकुलाहट बेचैन करे
मन एकाकी विद्रोह
करे
साथ उसके कोइ न चले
बाहर वर्षा की बूंदे
अंतस में भभकती
ज्वाला
सब लगने लगा छलावा
कैसे ठंडक मिल पावे
मन चाहा सब हो पाए
खोना बहुत सरल है
पर पाना आसान नहीं
है गहरी खाई दौनों
में
जिसे पाटना सरल नहीं
फासले बढ़ते जाते
फलसफे बनते जाते
अपने भी गैर नजर आते
कभी लगती फितरत
दिमागी
या छलना किसी अक्स
की
दीवानापन या आवारगी
हद दर्जे की बेबसी
बारिश कीअति हो गयी
दीवानगी भी गुम हो
गयी
आँखें नम हो कर रह गईं |आशा