पिंजरे से बाहर झांकता 
बारम्बार किसी को पुकारता 
उड़ने को बेकरार लगा |
पर कोई ध्यान नहीं देता 
यही सोच कर रह जाता 
शायद आदत है  उसकी ऐसी 
हर बात बार बार रटने की |
कई बार पिंजरा खुला 
बाहर भी निकला पर
मन न हुआ स्वतंत्र होने का
मन न हुआ स्वतंत्र होने का
खुले आकाश मैं उड़ने का |
मनोबल उसका कहीं खो गया 
या पिंजरे से मोह हो गया 
अंतिम क्षण तक वहीं रहा 
नई राह न खोजी उसने |
क्या कारण था इसके पीछे ?
समझ न पाया कोई उसे 
बंधन न था समर्पण था 
प्यार भरा निवेदन था 
कुछ वादे 
उसे निभाने थे 
जो उसके साथ न जाने थे |











