पहन कर पीली
कछौटी
ओढी काली कमली
मोर मुकुट शीश पर
सजाया
लाठी हाथ में ले कर |
वन में जा कर धेनु
चराई
फिर बंसी बजाई रास रचाया
फिर बंसी बजाई रास रचाया
कान्हा ने धूम
मचाई
वृन्दावन की
गलियों में |
चुपके से ऊपर चढ़
कर
दूध दही माखन की
मटकी
धीरे से चटकाई
नटखट मोहन ने |
कुछ खाया कुछ
फैलाया
कुछ साथियों को
खिलाया
की सीनाजोरी फिर
भी
भेद न छुप पाया |
माखन मुंह पर लगा
था
कुछ कपड़ों ने भी
खाया था
गुजरियों के
तानों से
हो कर त्रस्त उल्हानों से
माँ यशोदा ने
माँ यशोदा ने
हाथ पैर रस्सी से
बांधे |
क्षमा तब भी न
माँगी
रो रो सर पर घर
उठाया
खुद को पराया
जाया कहा
झूठमूट गुस्सा
दिखाया
माँ का मन टटोलना
चाहा |
यशोदा माँ हुई आहात
रस्सी से मुक्त
किया मोहन को
गोद में तुरंत
उठाया
सारा क्रोध भूल
गयी
हृदय से उसे लगाया
|
गोपिया बिचारी
क्या करतीं
जब माँ के पल्लू में
मुंह छिपाया
माँ को रक्षा कवच
जान
मन ही मन में
हर्षाया |
आशा