रिश्ते कैसे कैसे
कितने बने कितने बिगड़े
कभी विचार करना
कब कहाँ किससे मिले
उन्हें याद करना
तभी जान पाओगे
है कौन अपना
कौन पराया
कौन पराया
यूं तो बड़ा सरल लगता है
रिश्तों का बखान करना
सतही हों या अन्तरंग
सम्बन्ध हों
खून के
या बनाए गए
या बनाए गए
पर होता सच्चा रिश्ता क्या
इस पर गौर करना
आज तक कितने
तुम्हें अपने लगे
तुम्हें अपने लगे
जिन से बिछुड़ कर दुःख हुआ
कितना उनको याद किया
जो कभी नहीं लौटे
क्या कभी किसी का
अहसान याद कर पाए
किसीने यदि कुछ बुरा किया
उसे भुला नहीं पाए
उसे भुला नहीं पाए
कटुता विष बेल सी बढ़ी
फल भी कड़वे ही लगे
मतलब से ही बने रिश्ते
बाकी से किनारा कर गए
फिर प्रश्न क्या
है कौनसा रिश्ता पास का
और कौनसा दूर का
हैं जाने कितने लोग
दूरदराज़ के
दूरदराज़ के
मतलब से चले आते हैं
सड़क पर मिलते ही
कन्नी काट जाते हैं
तब खुद की सोच बदल देती
परिभाषा रिश्ते की
जो कभी बड़ा निकट होता था
अब सतही लगने लगता |
आशा