08 अक्तूबर, 2013

पुष्प



अपनों से जब तक
बिछुड़ा न था
अपूर्व आभा  लिए था
आकृष्ट  सभी को करता |
महक चहु  दिश फैलाता
अहसास अपने होने का
खोने न देता था
क्यूं कि वह सुरक्षित था  |
जब डाली से बिछुड़ा
गुलदस्ते में सजा
भेट प्रेम की चढ़ा
कुम्हलायाठुकराया गया
सब कुछ बिखर कर रह गया |
अब ना वह था
ना ही महक उसकी
सब कुछ अतीत में
 सिमट कर रह गया |
थी जगह धरती उसकी
जीवन धुँआ धुँआ हुआ
गुबार उठा ऊपर चढा
अनंत में समा गया |
अब न था अस्तित्व
ना खुशबू ना ही आकर्षण
बस थी धुंधली सी याद
उसके क्षणिक जीवन की |



06 अक्तूबर, 2013

01 अक्तूबर, 2013

छेड़छाड़ शब्दों से



की शब्दों से छेड़छाड़
अर्थ का अनर्थ हुआ
सार्थक सोच न उभरा
सभी कुछ बदल गया |
क्या सोचा क्या हो गया
प्यार ने भी मुंह मोड़ा
गुत्थी सुलझ न पाई
अधिक ही उलझ गयी |
हेराफेरी नटखट शब्दों की
बनती बात बिगाड़ गयी
अलगाव बढ़ता गया
उलझनें बढ़ा गयी |
यह न सोचा था उसने
इस हद तक बात बढ़ेगी
जिसका प्रभाव भूकंप सा
इतना तीव्र होगा
वह एकाकी उदास
खँडहर सा रह जाएगा |


है मनोकामना



है मनोकामना
हर उस पल को जीने की
जब होते थे साथ
कोई  तीसरा नहीं
एक अजीब सा अहसास
अब मेरा पीछा करता
ले आता समक्ष तेरे
और हो जाती
मग्न तुझमें |
मुस्कान तेरी 
 बनती बैसाखी
मेरे अंतर मन की
मैं खो जाती तुझ में
और तेरी यादों में
बीते पलों के वादों में|
भर जाती स्फूर्ति से
होती व्यस्त वर्तमान में
ओढे गए कर्तव्यों में |
आशा