आज पुनः आई बहार
चटकी कलियाँ
चटकी कलियाँ
खिले फूल महके गुलाब
बागवान के आँगन में|
मन पर काबू नहीं रहा
हाथ बढा कर लेना चाहा
एक फूल उस क्यारी से|
वह तो हाथ नहीं आया
शूल ने ही स्वागत किया
नयनों से अश्रु छलके
उस शूल की चुभन से
फिर भी मोह नहीं छूटा
उस पर अधिकार जमाने का |
बड़ी जुगत से बहुत जतन से
केशों में जिसको सजाया
दर्पण में देखा
पूंछ ही लिया
पूंछ ही लिया
सच कहना दौनों में से
है कौन अधिक सुन्दर ?
वह पहले तो रहा मौन
फिर बोल उठा
हैं
दौनों ही
एक से बढ़ कर एक|
फूल तो फूल ही है
सुरक्षित कंटक से
वह है उससे भी कोमल
सुन्दर सूरत सीरत वाली
सुन्दर सूरत सीरत वाली
कोई नहीं जिसका रक्षक |
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