वह झूलता रह गया
आशा निराशा के झूले में
जब आशा ने पैंग बढाया
क्षण खुशी का आया
गगन चूमने की चाह जगी
ऊपर उठना चाहा
निराशा सह न पाई
उसे पीछे खींच लाई
कभी यह तो कभी वह
रहती इच्छाएं अनंत
सोच नहीं पाता
क्या करे किसका साथ दे ?
त्रिशंकु हो कर रह गया
दौनों की खीचतान में
आशा तो आशा है
पूर्ण हो ना हो
जाने क्या भविष्य हो
पर निराशा देखी है
यहीं इसी जग में |
आशा