22 फ़रवरी, 2014

आशा निराशा



वह झूलता रह गया
आशा निराशा के झूले में
जब आशा ने पैंग बढाया
क्षण खुशी का आया
गगन चूमने की चाह जगी 
ऊपर उठना चाहा
निराशा सह न पाई
उसे पीछे खींच लाई
कभी यह तो कभी वह
रहती इच्छाएं अनंत
सोच नहीं पाता
क्या करे किसका साथ दे ?
त्रिशंकु हो कर रह गया
दौनों की खीचतान में
आशा तो आशा है
पूर्ण हो ना हो
जाने क्या भविष्य हो
पर निराशा देखी है
यहीं इसी जग में |
आशा

20 फ़रवरी, 2014

हाइकू (सुख के पल )



सुख के पल
ठहर गए होते
दुःख ना होता  |


बात गुड़ सी
है छोटी सी बानगी 
जादूगरी की |
तरसी दृष्टि
उसे ही देखने को
हुई वृष्टि |
मेकल सुता
संगम को बेताब
शिप्रा जल से |

पतंग  कटी
 डाली से जा उलझी 
उड़ न सकी |


-नई डगर
पहुंचाएगी कहाँ
 किसे खबर |


आहार बनी
एक बूँद रक्त की
मच्छर जी की |
 
शान्ति तलाशी
ना मिल पाई कहीं
हुई शून्य मैं |

राम रहीम
रहते दोनो साथ
नहीं विवाद |
 ओस मानती
जीवन क्षणिक है
कब क्षय हो |
आशा

18 फ़रवरी, 2014

याद नहीं रहते



निशा के आगोश में
स्वप्न सजते हैं
अनदेखे अक्स
पटल पर उभरते हैं
क्या कहते हैं ?
याद नहीं रहते
बस  सरिता जल  से 
कल कल बहते हैं |
यही चित्र मधुर स्वर
मन को बांधे रखते हैं 
प्रातः होते ही
सब कुछ बदल जाता है
हरी दूब और सुनहरी धूप
ओस से नहाए वृक्ष
कलरव करते पंख पखेरू
सब कहीं खो जाते
 रह जाता  ठोस धरातल
कर्तव्यों का बोझ लिए
कदम आतुर चौके में जाने को
दिन के काम दीखने लगते
होते स्वप्न तिरोहित |
आशा

16 फ़रवरी, 2014

पथिक गलत न था


दीपक जला तिमिर छटा
हुआ पंथ रौशन
जिसे देख फूला न समाया
गर्व से सर उन्नत
एक ययावर जाते जाते
ठिठका देख उसका तेज
खुद को रोक न पाया
एकाएक मुंह से निकला
रौशन पंथ किया अच्छा किया
पर कभी झांका है
अपने आसपास ऊपर नीचे
दीपक की लौ कपकपाई
कोशिश व्यर्थ गयी
देख न पाई तिमिर
दीपक के नीचे
पर पंथी की बात कचोट गयी
उसके गर्वित  मन को
जब गहराई से सोचा
पाया पथिक गलत न था
परमार्थ में ऐसा डूबा
अपना तिमिर मिटा न सका
पर फिर मन को समझाया
कुछ तो अच्छा किया |
आशा