भयावह काली रात में
विचारों का सैलाव है
एक अजनवी साया
चारों ओर से घेरे है |
अनसुनी आवाज
बहुत दूर से आती है
एक कहानी लुका छिपी करती
फिर लुप्त हो जाती है |
पर जिन्दगी खामोश है
ना कोइ आस ना उमंग
न जाने क्या सोच है
मन में बहुत आक्रोश है |
मन में बहुत आक्रोश है |
यह शाम यहीं तो
नहीं थम जाएगी
काली रात के बाद
कभी तो सुबह आएगी |
दूर सड़क पर
है कुछ गहमागहमी
पर रात के अँधेरे में
यहाँ भी सन्नाटा होगा|
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क्या यही भयावह स्वप्न
मुझ से दूर हो पाएगा
इस तन्हाई में
सजीव रंग भर पाएगा |