10 मार्च, 2014

सैलाव विचारों का


भयावह काली रात में
विचारों का सैलाव है
एक अजनवी साया
चारों ओर से घेरे है |

अनसुनी  आवाज
बहुत दूर से आती है
एक कहानी लुका छिपी करती 
फिर लुप्त हो जाती है |

पर जिन्दगी खामोश है
ना कोइ आस ना उमंग
न जाने क्या सोच है 
मन में बहुत आक्रोश है |
यह शाम यहीं तो
 नहीं थम जाएगी   
काली रात के बाद
कभी तो सुबह आएगी |
दूर सड़क पर 
है कुछ गहमागहमी 
पर रात के अँधेरे में
 यहाँ भी सन्नाटा होगा|
|
क्या यही भयावह स्वप्न
मुझ से दूर हो पाएगा
इस तन्हाई   में
सजीव रंग भर पाएगा |

09 मार्च, 2014

होली



वही अवीर वही गुलाल
हंसी खुशी और खुमार
बस चेहरे बदल गए हैं
होली के अर्थ बदल गए हैं |
होली तो होली है
रंग में सभी लाल
पर कुछ फर्क हुआ है
रिश्ते बदल गए हैं |
हर वर्ष बड़े उत्साह से
दहन होलिका का करते
खेली जाती होली
ओ मेरे हमजोली |
गले मिलते फाग गाते
चंग की थाप पर
ठुमके लगाते मीठा खाते 
बैर भाव  भूल जाते |
ना बड़ा ना छोटा कोई
समभाव मन में रहता
तन मन रंगता जाता
मन का  कलुष  फिर भी 
दूर न हो पाता |
आशा

07 मार्च, 2014

तस्वीर कुछ कह गयी


               (१)
है चन्दा या सूरज यह तो पता नहीं
 पर जल से है यारी इस में शक नहीं |


(२)
रात कितनी भी स्याह क्यूं न हो
 चाँद की उजास कम नहीं होती
प्यार कितना भी कम से कमतर हो
उसकी उन्सियत कम नहीं होती |
(3)
महकता मोगरा
महकता उपवन
बालों में यूं  सजता
झूमता योवन |
(४)
खेतों में आई बहार
पौधों ने किया नव श्रृंगार
रंगों की देखी विविधता
उसने मन मेरा जीता
आशा

06 मार्च, 2014

साधना का उत्तंग शिखर



साधना का उच्च शिखर
 दूर दिखाई देता
वहां पहुँच साधना करना
 सरल नहीं लगता |
पहुँच मार्ग खोजा भी
 पर कंटकों से भरा
दो कदम आगे बढ़ते
लहूलुहान होते
     समझाने की कोशिश करते
इतना सरल नहीं
 उस ऊंचाई को छूना|
पर मन को हार
 स्वीकार नहीं
की संचित शक्ति 
उसी मार्ग पर चलने की |
पक्षियों से साहस लिया
 खुले अम्बर में उड़ने का
फिर भी हारे थके पंथी से
कई बार रुके
काश  मध्य मार्ग मिलता 
 शिखर पर जाने का |
उत्सुकता जागी
 उसे पाने की
अन्य मार्ग कोइ न था
 बहुत देर से जाना । 
प्रयत्न कभी विफल नहीं होते
विफलता मार्ग दिखाती
 आगे बढ़ने की चाहत
और अधिक बढ़ जाती |
वही बनी   मेरी प्रेरणा 
  आधा मार्ग तय भी किया
पर उत्तंग शिखर पर
  परचम ना फैला पाया ।
यही बात मुझे सालती है
फिर भी हिम्मत नहीं हारी है 
मिशन सफल हो 
आशा अभी बाक़ी है |
आशा


05 मार्च, 2014

सब सतही

प्यार न दुलार
 सब सतही
खून ठंडा हो गया
या सफेद
उसमें उबाल
 न आता |
अशांत मन
किसी की सच्चाई
नहीं जानता
इसी लिए
अपने हक़ के लिए
जूझना भी
नहीं चाहता |
सोचा हुआ
पूरा न होता
उदासी का कारण
समझ न आता |
आशा