खेल खेल में मन उलझा
नई पुरानी यादों में
किसी ने दी खुशी
कुछ शूल सी चुभीं |
इसी चुभन ने भटकाया
खेल में व्यवधान आया
मित्रों ने भांप लिया
खेल रोक कर समझाया |
पहले खेल फिर कुछ और
है बड़ी काम की बात
सफल जीवन में
जीत का है यही राज़़ |
अवधान किया केन्द्रित
खेल में व्यस्त हुआ
सोच ने ली करवट
यादों में मिठास घुली |
है यह कैसा टकराव
नहीं स्थाईत्व किसी में
जब उभर कर आता
मन उद्वेलित हो जाता |
खेल में जीत हार
एक लंबा सिलसिला हुआ
विचारों का सैलाव आया
कविता का जन्म हुआ |
जब वर्तमान भी जुड़ने लगता
भाव तरंगित होते
शब्द प्रवाहित होते
सोचने को बाध्य करते |
क्या है यही कहानी
खेल खेल में
शब्दों के उछाल की
कविता के जन्म की |
आशा