27 अगस्त, 2014

नव स्वप्न


नव स्वप्न
मन ने एक स्वप्न सजोया
छोटा सा  घरोंदा बनाया
था हरियाली से भरपूर
चहु ओर बरसता नूर |
प्रातः काल द्वार  खुलते ही
सौरभ सुमन स्वागत करता
शीतल पवन आकृष्ट करता
डाल पर डाला झूला
मंथर गति से हिलता |
पास ही झरने की कलकल
पक्षियों की चहचहाहट
जल में अक्स मेरी कुटीया का
बहुत मनोरम लगता
उठने का जी ना करता |
ऊपर नीलाम्बर में
सूर्य छिपा बादलों में
उन से अटखेलियाँ करता
यदि पंख मुझे भी मिलते
उस खेल में शामिल होती
मन उमंग से भरता |
आशा

25 अगस्त, 2014

श्री महाकाल बाबा की अंतिम सवारी





Image result for महाकाल सवारी तस्वीरें

श्री महाकाल बाबा  की अंतिम सबारी :-महाकाल मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों  में से एक है |
प्रत्येक वर्ष सावन के महीने  में व् आधे भादों में  हर सोमवार को भगवान महाकाल अपने भक्तों के हालचाल जानने के लिए नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं |इस हेतु वे विभिद रूप धारण करते हैं |
  उनकी सवारी पालकी में निकाली जाती है |सबसे पहले गार्ड ऑफ़ ऑनर पुलिस गार्ड देते हैं प्रशासन प्रमुख  पूजन करते हैं |पूजन स्थल पर भी अपार भीड़ हो जाती है |भजन मंडलियाँ साथ गाती बजाती चलती हैं |
विभिन्न अखाड़े अपने करतब दिखाते चलते हैं |
    बड़े धूमधाम से सवारी प्रमुख मार्गों से गुजराती है और शिप्रा तट तक जाती है |कहा जाता है कि इस समय भगवान महाकाल  मंदिर में नहीं होते |जब सवारी बापिस आजाती है तब पुन: प्राणप्रतिष्ठा की जाती है |
       बचपन से ही मैंने सवारी देखी है |पर तब के सवारी के रूप में बहुत परिवर्तन हुए हैं |तब इतनी भीड़ नहीं होती थी सरलता से दर्शन सुलभ थे |पर अब इतनी भीड़ होती है कि बेचारे वृद्ध और बच्चे तो बहुत परेशान हो जाते हैं |तब भी आस्थावान लोग दर्शनार्थ जाते अवश्य हैं |
अंतिम सवारी पर स्थानीय अवकाश रहता है | चाहे कितनी भी कठिनाई आये इस दर्शन  का आनंद ही कुछ और होता है |अपार शान्ति का अनुभव होता है |
          दूर दूर से लोग सवारी देखने आते हैं |
बच्चे खिलौनों ,पीपड़ी गुब्बारों का आनंद उठाते हैं |पर फर्क आज देखने को मिलता है |पहले खिलोने मिट्टी के बिकते थी अब नहीं |
             जय श्री महाकाल

23 अगस्त, 2014

चर्चा आम हो गई





बीते कल और आज में
है अंतर स्पष्ट
पहले दबी ढकी बातें थीं
यहाँ वहां निगाहें थी
तब भी राज
 कभी ना खुलते
सदा दबे ही रह जाते थे
जीवन के साथ
चले जाते थे
अब सब नजर आते हैं
सीमाएं लांघ जाते हैं
अब सुरा सुन्दरी की चर्चा 
आम हो गई 
पहले दबी ढकी थी 
अब सरेआम   हो गयी
हया का पर्दा उठा 
बेहयाई रोज की 
बात हो गई
अब राज कोई न रहा 
चर्चा आम हो गई |
आशा

20 अगस्त, 2014

ग्रंथि मन की


दिए गए आशीष 
कितने सार्थक आज 
एक बच्चा पल न पाता 
झूलाघर को सोंपा जाता 
क्या संस्कार पाएगा
सोचने को बाध्य करता |
कितना अकारथ है  कहना 
दूधो नहाओ पूतो फलो
एक आँख  किसकी
बेटी बिन घर अधूरा
बेटा वंश बेल बढ़ाएगा |
सभी आकंठ लिप्त
धन संचय  की होड़ में
पीछे रहना नहीं चाहते 
आधुनिकता की दौड़ में
 यहाँ ममता का क्या काम |
 भाषण नारी उत्थान के
नारी जागरण की बातें 
पर घर में सम्मान कितना
 महिलाएं ही जानती हैं
खुद को पहचानती हैं ||
आए दिन की तानेबाजी 
घर में दर्जा  दासी सा
वे रोज झेलती रहतीं
नियति से करके समझौता 
उफ तक नहीं करतीं |
आशीषों का अर्थ खोजती 
मन में ग्रंथि बना बैठी 
नया महमान यदि आया
क्या न्याय उसे मिल पाएगा 
वह कैसे न्याय करेगी |
दौनों में से किसे चुनेगी 
नौकरी  या माँ की ममता
पहले ही मंहगाई है 
घर में बहुत तंगाई है
यदि दौनों को एक साथ  चुना
 झूला घर आबाद होगा
 दौनों के संग न्याय न होगा|
आशा