05 अक्तूबर, 2014

दोषी कौन





अक्सर कहा जाता है कि पुरुष वर्ग महिलाओं को बहुत दबा कर रखता है | आये दिन महिलाओं को मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना सहना पड़ती है |पर सच्चाई कुछ और ही बयान करती है |
         यदि निस्प्रह हो कर देखा जाए तब ही सच्चाई सामने आती है | सच तो यही है कि महिलाएं ही महिलाओं की सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं | पहले भी सास–बहू, ननद-भाभी, देवरानी-जेठानी में आए दिन नोक झोंक
होती रहती थी | हर छोटी से छोटी बात का बतंगड़ बना दिया जाता था | एक दूसरे के विरुद्ध कान भरे जाते थे फिर भीषण धमाके के साथ घर में तलवारें भांजी जाती थीं |
       पर शायद तब शिक्षा का अभाव एक कारण था इसी से आपसी सम्बन्ध सहज नहीं रह पाते थे | अक्सर महिलाएं किसी की खुशी देख कर जलती थीं और बदले की भावना से प्रतिकार करती थीं |
          आज के युग में पढ़ने लिखने के बावजूद विचारों में रत्ती भर भी बदलाव उनकी सोच में नहीं देखने को मिलता | दूसरे की थाली में सदा ज्यादा घी दिखाई देता है |
चाहे जितने भी क़ानून बन जाएं, बड़े बड़े मंचों से महिला जागृति की बातें की जाएं पर अपने घर में झाँक कर कोई नहीं देखना चाहता | महिलाएं अपने बीते कल में ही जीती हैं जैसा व्यवहार अपने रिश्तेदारों से मिला वही व्यवहार दूसरों के साथ करना पसंद करती हैं | बार बार कुंठाएं उभरती हैं | यदि खुद ने कष्ट उठाए तो दूसरों की खुशी देख नहीं पातीं | मन में भरे जहर को उगले बिना चैन नहीं आता | सच है महिलाएं ही महिलाओं की सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं |
आशा

03 अक्तूबर, 2014

रावण


था वह एक प्रकांड पंडित
अतुलित बुद्धि का स्वामी
थे दस शीश दशानन के  
कुछ स्वस्थ कुछ दुर्बुद्धि लिए
एक कारण कुबुद्धि का था  
बड़ा पद और मद की महिमा  
उच्च पद आसीन वह
गर्व से भमित हुआ
दुर्बुद्धि और मद मत्सर
बन गए विनाश का कारण
आज भी गली गली
 कई रावण दीखते हैं
अच्छे विचार भूल से आते
बुराइयों से घिरे रहते
अब यही देखने को मिलता
सक्रीय बुरे विचार उसे
 विनाश के नजदीक लाते
आये दिन कई रावण मारे जाते |
आशा

01 अक्तूबर, 2014

वह खोज रहा






अस्थिर मन वह खोज रहा
अपने प्यार की मंजिल
भटक गया था राह से
घिर कर आपदाओं से |
अब खोजता
बाधा विहीन सुगम सरल
सहज मार्ग
उस तक पहुँचने का |
है मन में खलबली
कहाँ जाए किधर जाए
कहीं वह भूली तो न होगी
जाने क्या सोचती होगी |
क्या सजा देगी वादा खिलाफ़ी की
समय पर पहुँच न सका
इतनी सरल भी नहीं
की बातों पर विश्वास कर ले |
नाराजगी उसकी झेलना
 इतना  नहीं आसान
मान भी गई यदि
मन में तो दुखी होगी |
बेचैनी जाती नहीं
प्रश्न पीछा नहीं छोड़ते
कैसे उबर पाए
उस तक पहुँच पाए |

29 सितंबर, 2014

पत्ता अकेला




पत्ता अकेला बह चला बेकल
कैसे हो पार
मन व्यथित हो बाधा पार कैसे
बिना खिवैया

चिंतित मन शरणागत तेरा
दे बुद्धि उसे
शक्ति स्वरूपा तेज पुंज से जन्मी
जग जननी
आया  शरण हे देवी कात्यायानी
तुझे प्रणाम
दुष्ट नाशनी  देवी अम्बिका मैया
संबल बनो 
पार लगाओ भव बाधा हर लो
हस्त बढ़ाओ
एक आस है तुम से ही उसको
पार लगाओ  |


आशा