प्रातः काल सुनहरी धूप
लम्बी सड़क दूर तक
दे रही कुछ सीख
तनिक सोच कर देखो |
आच्छादित वह दीखती
हरेभरे कतारबद्ध वृक्षों से
बनती मिटती छयाओं से
उनके अद्भुद आकारों से |
बाल सूर्य की किरणे अनूप
छनछन कर आती धूप
वृक्षों की टहनियों को छू कर
करती आल्हादित तन मन |
निमंत्रित करतीं वहां आने को
मन बावरे को सवारने को
एक खिचाव सा होता
अजीब लगाव सा होता |
फिर से पहुँच जाती
कल्पना जगत में
खो जाती सुरम्य वादी की
उन रंगीनियों में |
कभी लम्बी कभी छोटी
छाया वृक्षों की
देती संकेत
विविधता पूर्ण जीवन की |
कहीं ऊंची कहीं नीची सड़क
दिखाती जिन्दगी में
आते उतार चढ़ावों को
जीवन के संघर्षों को |
प्रकृति के कण कण से यहाँ
मिलती रहती शिक्षा हर पल
इस क्षण को जी भर कर जी लो
कल की किसको खबर
आशा