18 जून, 2016
15 जून, 2016
अरे यह क्या ?
अरे यह क्या ?
हैयहाँ अपार शान्ति
अंतर से उपजी या थोपी गई
कारण जान न पाए
मुंह पर लगी पट्टिका का
राज समझ न पाए
यह तभी पता चलेगा जब
उसे बोलने का
अवसर मिलेगा
मुंह पर से पट्टिका हटेगी
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होगी
इस मौन के पीछे कहीं
कोई तो कारण होगा
है यह स्वनिर्मित या सुझाया गया
कटु भाषण से बचने के लिए या
आरोप प्रत्यारोपों से
खुद को अलग रखने के लिए
उत्सुकता अवश्य है जानने की
कि मुंह पर यह पट्टिका किस लिए
कहीं ऐसा तो नहीं
हो वाणी पर संयम नहीं
पर सब तभी पता चलेगा
जब silenceकी पट्टी
मुंह से उतरेगी
उसकी वाणी मुखर होगी |
आशा
हैयहाँ अपार शान्ति
अंतर से उपजी या थोपी गई
कारण जान न पाए
मुंह पर लगी पट्टिका का
राज समझ न पाए
यह तभी पता चलेगा जब
उसे बोलने का
अवसर मिलेगा
मुंह पर से पट्टिका हटेगी
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होगी
इस मौन के पीछे कहीं
कोई तो कारण होगा
है यह स्वनिर्मित या सुझाया गया
कटु भाषण से बचने के लिए या
आरोप प्रत्यारोपों से
खुद को अलग रखने के लिए
उत्सुकता अवश्य है जानने की
कि मुंह पर यह पट्टिका किस लिए
कहीं ऐसा तो नहीं
हो वाणी पर संयम नहीं
पर सब तभी पता चलेगा
जब silenceकी पट्टी
मुंह से उतरेगी
उसकी वाणी मुखर होगी |
आशा
13 जून, 2016
रक्त दान महादान
बेटी को चोट लगी
मां की आँखें छलकीं
बेटे का जब रक्त बहा
मन पिता का बेहाल हुआ
है यह रिश्ता खून का
ना कि किसी पर थोपा गया
कुछ रिश्ते मिलते समाज से
वे कभी सतही होते
कभी प्रगाढ़ भी होते
लोग वही भाग्यशाली होते
निरोगी काया पाते
इनके रिश्ते होते
अच्छी आदतों से
पर कुछ रिश्ते होते अनाम
जो रक्त दान से बनते
जिसको रक्त मिल पाता
अपने जीवन रक्षक को
दिल से दुआएं देता
जीवन भर अहसान मानता
रक्त दान से मिले रिश्ते को
सबसे ऊपर मानता |
आशा
09 जून, 2016
06 जून, 2016
तेवर
ना दिखा तेवर अपने
क्या हम ही मिले थे
सबसे पहले
तेरी नाराजगी
ज़रा सी बात पर
शराफ़त तक भूली
लाल पीली होने लगी
बिना बात की बात पर
यह कैसा व्यबहार तेरा
संयम अपना खो कर
सारी हदें पार कर
बातों को तूल देने लगती
हर वक्त की किचकिच
यह नाराजगी
घर को घर न रहने देती
मन संतप्त कर देती
हमें तो प्यारी लगती है
मुस्कान भरी चितवन तेरी
आगे से तेवर अपने
न दिखाना मुझ को
प्यार भरे दिल की सौगात
ही बहुत है मेरे लिए |
आशा
ये पांच दिन
गिन गिन दिन चिंता बढी
कारण समझ न पाई
दो दिन पूर्व ही आने को थे
ना आए क्या बात हुई
कल भी पूरा दिन बीता
रात बिताई तारे गिन गिन
दो से चार चार से आठ
अनगिनत तारों का संगठन
गिनना लगा असंभव
किये नेत्र बंद पर
निंद्रा से कोसों दूर
तुम ही तुम नजर आए
अचानक धन गरजे
बिजली कड़की
आंधी चली वृष्टि हुई
अधिक बेचैन कर गई
फोन पर तुमने कहा
फँस गया हूँ कार्य में
पांच दिन न आ सकूंगा
कुछ राहत मन को मिली
फिर भी हूँ परेशान कैसे कटें
ये पांच दिन तुम्हारे बिन |
आशा
01 जून, 2016
ऐतवार उठ गया है
मैंने सत्य के अलावा
कुछ न कहा
तूने ही मुझे झुटलाया
मैं जान नहीं पाया
क्या था तेरा इरादा
यदि थोड़ी भनक होती
कुछ तो लिहाज करती
मुंह से नहीं कहती
इशारे से ही सही
मन की चाह बताती
मुझे भरम न होता
इतना प्रपंच न होता
मैं मौन धारण कर लेता
एक शब्द भी न कहता
पर तूने सब के समक्ष
झूटा मुझे बनाया
मन को ठेस लगी
दिल पर गहरा घाव हुआ
जाने कब तक भर पाएगा
कहीं नासूर तो न हो जाएगा
पर तुझे इससे क्या
खैर जो हुआ सो हुआ
तेरी बेवफाई की
यादें न भूल पाऊंगा
ऐतवार उठ गया है
कैसे पुनः पाऊंगा |
आशा
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